देवेन्द्र की कहानी में पुलिस का तमाशबीन चेहरा आत्मकथ्य
श्रीकांत वर्मा पीठ का आयोजन
बिलासपुर। कथाकार देवेन्द्र की ‘कहानी क्षमा करो हे वत्स’ समाज और न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाती है और पुलिस का तमाशबीन चेहरा उजागर करती है।
श्रीकान्त वर्मा पीठ द्वारा आयोजित कहानी पाठ में अध्यक्षता साहित्यकार व कमिश्नर डॉ. संजय अलंग ने की। कथाकार देवेन्द्र ने अपनी कृति क्षमा करो हे वत्स का पाठ किया। लेखक देवेन्द्र की कहानी क्षमा करो हे वत्स एक आत्मकथा है जो एक पिता ने अपने 10 वर्षीय पुत्र के अपहरण और हत्या पर लिखी है। यह कहानी सबसे बड़ा प्रश्न समाज और न्याय व्यवस्था पर उठाती है।
देवेन्द्र के पुत्र अंशुल का अपहरण हो जाता है। अपहरण के 11 दिन बाद उसका क्षत-विक्षत शव बरामद होता है। 11 दिन तक पुलिस तमाशबीन बनी रहती है। देवेंद्र कहानी में अंशुल को लेकर अपराध बोध से ग्रस्त हैं। वे अंशुल से जुड़े कई सवालों को टाल जाते हैं। न्यायपालिका से देवेन्द्र प्रश्न करते हैं। जज साहब आप मुझसे बार-बार अपराधी की सच्ची शिनाख्त मांगते हैं। हम कहां से वे गवाह लाएंगे जिन्होंने हत्या करते देखा हो। उसकी खोपड़ी पर मांस तक नहीं है। हत्या किसने की यह रहस्य कोई नहीं खोल पा रहा। जबकि सुरक्षा और न्याय देने का ठेका आपने ले रखा है। यह अरण्यरोदन किसी के कानों तक नहीं पहुंचा। मैं तो असली अपराधी आपको मानता हूं।
व्यक्ति समाज का प्रमुख अंग है उसकी सोच के निर्धारण में सामाजिक घटनाओं की प्रमुख भूमिका रहती है। व्यक्ति के भीतर ही आस्था और विश्वास जन्म लेते हैं। पुत्र की हत्या के साथ ही देवेन्द्र के भीतर से इन सब कोमलतम भावों की हत्या हो जाती है। जीवन में आये इस भीषण झंझावात से निकल कर दु:स्वप्र लिए वे लखीमपुर जाने वाली एक बस में अपने शरीर को रख देते हैं।
बिलासपुर के प्रार्थना भवन में आयोजित कहानी पाठ में साहित्यकार सतीश जायसवाल, लखन सिंह, असीम तिवारी, खुर्शीद हयात, रूद्र अवस्थी, अतुलकांत खरे, अरूण दाभडक़र, मधुकर गोरख, सुनील चिपड़े , अजय श्रीवास्तव, सत्यभामा अवस्थी, डॉ. रश्मि सहित बहुत से साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन श्रीकुमार और सुनित शर्मा ने किया।