• पूर्व मंत्री रेणुका सिंह समेत एमके राउत, आलोक शुक्ला सहित कई अफसरों की बढ़ सकती है मुश्किल
बिलासपुर। CBI inquiry ordered: निःशक्तजनों के नाम पर हुए 1000 करोड़ से भी अधिक के कथित वित्तीय घोटाले की जांच आखिरकार CBI को सौंप दी गई है। निःशक्तजनों के लिए स्थापित स्टेट रिसोर्स सेंटर (एसआरसी) और फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (पीआरआरसी) में कथित तौर पर सैकड़ों करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितताओं से संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने यह आदेश दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में सीबीआई को पहले से दर्ज एफआईआर पर आगे बढ़ने और 15 दिनों के भीतर संबंधित दस्तावेज जब्त करने का निर्देश दिया है।
CBI inquiry ordered: जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया गया। याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ठाकुर ने दावा किया है कि पीआरआरसी में बड़े पैमाने पर वित्तीय हेराफेरी की गई है, जिसमें कर्मचारियों की फर्जी सूची के आधार पर वेतन निकाला गया और सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया गया। कोर्ट ने पाया कि मुख्य सचिव द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट और विशेष ऑडिट में 31 वित्तीय अनियमितताएं सामने आई हैं, जो याचिकाकर्ता के आरोपों की पुष्टि करती हैं। कोर्ट ने कहा कि मामले में प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद हैं, जो दर्शाते हैं कि राज्य के खजाने को भारी नुकसान हुआ है। इसकी निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच के लिए सीबीआई को जिम्मेदारी सौंपी जाती है।
आवेदन तक नहीं किया उसे नौकरी करना दिखाया
CBI inquiry ordered: याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि कुंदन सिंह ठाकुर को पीआरआरसी में सहायक ग्रेड- दो के रूप में नौकरी करना दिखाया गया, जबकि उन्होंने कभी वहां नौकरी के लिए आवेदन नहीं किया। फिर भी, उनके नाम पर वेतन निकाला गया, जो एक बड़े वित्तीय घोटाले का हिस्सा है। उन्होंने दावा किया कि पीआरआरसी केवल कागजों पर काम कर रहा है और इसके लिए कोई भर्ती प्रक्रिया या विज्ञापन नहीं जारी किया गया। याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि एसआरसी के खातों का 14 साल तक ऑडिट नहीं हुआ और जब उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी, तो उन्हें धमकियां मिलीं।
CBI inquiry ordered: राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता यशवंत सिंह ठाकुर ने तर्क दिया कि एसआरसी और पीआरआरसी का वार्षिक बजट क्रमशः 60 लाख से 1 करोड़ और 34 से 50 लाख रुपये है। इसलिए, याचिकाकर्ता का हजारों करोड़ के घोटाले का दावा अतिशयोक्तिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह मामला प्रशासनिक खामियों का है, न कि आपराधिक साजिश का। सरकार ने दावा किया कि जांच में 31 अनियमितताएं पाई गईं, जिनके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए और सुधारात्मक कदम उठाए गए। निजी प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं हैं और याचिका व्यक्तिगत दुर्भावना से प्रेरित है। कुछ प्रतिवादी, जैसे तत्कालीन मंत्री रेणुका सिंह (वर्तमान में विधायक) ने कहा कि वे केवल नाममात्र के लिए समिति की सदस्य थीं और किसी बैठक में शामिल नहीं हुईं। अन्य प्रतिवादियों ने दावा किया कि वित्तीय लेनदेन पारदर्शी थे और ऑडिट में कोई बड़ी अनियमितता नहीं पाई गई।
CBI inquiry ordered: हाईकोर्ट ने कहा कि विशेष ऑडिट और मुख्य सचिव की रिपोर्ट में वित्तीय अनियमितताओं की पुष्टि हुई है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि एसआरसी को 2019 में भंग करने और इसके खातों को बंद करने का निर्णय अनियमितताओं को छिपाने का प्रयास हो सकता है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि जब उच्च पदस्थ अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हों, तो निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई को जिम्मेदारी दी जा सकती है।
कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया कि वह पहले से दर्ज एफआईआर पर जांच को आगे बढ़ाए और जल्द से जल्द निष्पक्ष जांच पूरी करे।
12 अफसर और नेता जांच के दायरे में
CBI inquiry ordered: इस जांच के दायरे में जो जनप और अधिकारी शामिल हैं। रेणुका सिंह, जो 2004 में एसआरसी के पंजीकरण के समय महिला एवं बाल कल्याण विभाग की पूर्व मंत्री और एक्स-ऑफिशियो चेयरपर्सन थीं, ने पहली बैठक से पहले ही पदभार सौंप दिया था, और कोर्ट ने उनके खिलाफ कोई निर्देश नहीं दिया। इसके अलावा, कोर्ट ने विभागीय जांच के लिए 12 अधिकारियों (प्रतिवादी 15 से 26) को लक्षित किया है, जो एसआरसी, पीआरआरसी की मैनेजिंग कमेटी के एक्स-ऑफिशियो सदस्य थे या वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े पाए गए। इनमें शामिल हैं: विवेक ढ़ांड, तत्कालीन अधिकारी (सामान्य प्रशासन या संबंधित विभाग); एम.के. राउत, तत्कालीन सचिव (ग्रामीण विकास या संबंधित विभाग); अलोक शुक्ला, तत्कालीन सचिव (शिक्षा या सामाजिक कल्याण विभाग); सुनील कूजूर, तत्कालीन सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग; बी.एल. अग्रवाल, तत्कालीन सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग; सतीश पांडे, तत्कालीन अधिकारी, सामाजिक कल्याण विभाग; पी.पी. सोती, तत्कालीन अधिकारी, सामाजिक कल्याण विभाग; राजेश तिवारी, निदेशक, स्टेट रिसोर्स सेंटर (राज्य शरोत निःशक्त जन संस्थान), रायपुर; अशोक तिवारी, निदेशक, स्टेट रिसोर्स सेंटर (राज्य शरोत निःशक्त जन संस्थान), रायपुर; हरमन खलखो, उप निदेशक, सामाजिक कल्याण विभाग; एम.एल. पांडे, अतिरिक्त निदेशक, सामाजिक कल्याण विभाग; और पंकज वर्मा, उप निदेशक, सामाजिक कल्याण विभाग।

