* हृदेश केसरी

बिलासपुर। Black business of coal: जिले में कोयले के अवैध कारोबार पर कोई अंकुश नहीं है। सरगांव – बेलमुंडी से रतनपुर तक खुले रूप में कोयले की चोरी और मिलावटखोरी चल रही है। खनिज  विभाग और पुलिस के अधिकारी आंखें मुंदे हुए हैं। उनका  इस तरह मूकदर्शक बने रहने का अर्थ समझा जा सकता है।

सूत्रों के मुताबिक सकरी बिलासपुर बाईपास में 75 से भी अधिक कोल डिपो में कोयले के काले कारोबार तथा कोयले में गिट्टी पत्थर और चूरे के साथ डस्ट की मिलावट का खेल हो रहा है। इस मिलावटी कोयले की सप्लाई महाराष्ट्र और दक्षिण के राज्यों तक  रही है और रोजाना  लखो का वारा-न्यारा चल रहा है।कंपनियों को ओर से इसके खिलाफ शिकायतें की हुई हैं परंतु कोई कार्रवाई आज तक नहीं हुई। कोयले में मिलावट कानूनन गंभीर अपराध है मगर कोल तस्करों पर नकेल नहीं कसा जा रहा है।  सूत्रों का कहना है कि रात में कोयले में मिलावट करके गाड़ियां  रवाना की जाती हैं। अच्छी किस्म का कोयला निकाल कर उसमें निम्न स्तर का कोयला और डस्ट भर दिया जाता है। इस तरह यह काला कारोबार चल रहा है, जिस पर कोई कार्रवाई न होना कई सवालों को जन्म दे रहा है। 

शहर के आसपास 75 कोल डिपो

Black business of coal: कोल इंडिया की कंपनी दक्षिण पूर्व कोयला प्रक्षेत्र (एसईसीएल) का मुख्यालय यहीं हैं। आसपास  के जिलों में कई कोयला खदानें हैं। कुछ इलाकों में जमीन की सतह पर कोल ब्लॉक हैं। इन कोल ब्लॉक्स से कोयले  की बड़े पैमाने पर चोरी हो रही है। चोरी का कोयला खपाने ये डिपो केन्द्र बन गए हैं। शहर से  लगे इलाकों में 75 कॉल डिपो संचालित हो रहे हैं। रतनपुर से लेकर सरगांव तक कोल डिपो में कोयले की हेराफेरी हो रही हैऔर यह काला कारोबार बेरोकटोक फल-फूल रहा है। इतना  बड़ा अवैध कारोबार बिना राजनीतिक संरक्षण  के नहीं चल सकता। राजनेता इसीलिए मौन साधे हुए हैं। कोल डिपो से खनिज से  लेकर पुलिस तक मोटी रकम पहुंचाई जा  रही है। कोयला माफिया अधिकारियों का तबादला कराने  तक का दम भरता है। ऐसा लगता है कि जिला प्रशासन के अधिकारी कोयले के अवैध कारोबार में कड़ी कार्रवाई करने  से बचने की कोशिश कर रहे हैं।

मुंगेली तक फैला चुका कारोबार 

Black business of coal: बिलासपुर जिला  ही नहीं अब तो कोयले यह कारोबार मुंगेली जिले तक फ़ैल चुका है। प्रतिदिन खदानों  से कोयला भरकर  निकलने वाली गाड़ियां इन्हीं कोल डिपो के बाहर  लाइन में खड़ी रहती हैं । ड्राइवरों  से साठगांठ कर स्टीम और निम्न स्तर के कोयले की हेराफेरी हो रही है। स्टीम कोयले की जगह निम्न स्तर का कोयला और पत्थर भर दिया  जाता है। यह सब  पुलिस से छिपा हुआ भी नहीं है। पावर और पैसा  चल रहा है। इस कारोबार में मोटा मुनाफा देख कई नए कारोबारी भी आ गए। इस काले कारोबार में किसी की हैसियत उसके राजनीतिक रसूख से  तय होती है। जो पावर में रहता है, उसका सिक्का चलने लगता है। समझना कठिन नहीं है कि अभी किसका सिक्का चल सकता है। 

बगैर अनुमति कोल डिपो का संचालन 

Black business of coal: कुछ माह पहले रतनपुर के एक कोल डिपो में वहां की पुलिस को कोयले की हेराफेरी (आम भाषा  मे कोयले की कटिंग) की शिकायत हुई थी । जब पुलिस खनिज विभाग के अधिकारियों  के साथ कोल डिपो में कार्रवाई करने पहुंचे तो पता  चला कि बिना अनुमति के ही कोल  डिपो का संचालन किया जा रहा है ।इसी से पता चलता  है कि किस तरह इस काले कारोबार को संरक्षण मिला हुआ है। कितने कोल डिपो बिना लाइसेंस के संचालित हो रहे हैं,  खनिज विभाग के अधिकारी इस सवाल पर बगले झांकने लगते हैं । सूत्रों के मुताबिक खनिज विभाग के कुछ ऐसे भी अधिकारी हैं जिनकी पार्टनरशिप में ये कोल डिपो चल रहे हैं। कोल डिपो में पैसे का निवेश कर मोटा फायदा भी कोयले के इसअवैध कारोबार से ले रहे हैं। कुछ नेताओं का भी पैसा लगा  होना बताया जा रहा है। जाहिर है उनका पैसा लगवा कर कारोबारी राजनेताओं का संरक्षण भी हासिल कर लेते हैं।

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