राजनांदगांव। Controversy over sacrifice: डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी के ऊपर मंदिर के गुरुवार शाम को बलि देने की कोशिश करने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। यहां एक भेड़ को लेकर आदिवासी समाज के संग पूर्व सांसद स्व. शिवेन्द्र बहादुर के पुत्र भवानी बहादुर पहाड़ के पीछे स्थित सीढ़ी से ऊपर पहुंच गए। कहा जा रहा है कि बलि देने के इरादे से भेड़ को ऊपर लाया गया, इस बात की जानकारी जैसे ही ट्रस्ट के सदस्यों को लगी, उन्होंने सीधे प्रशासनिक अधिकारियों को पूरी स्थिति से अवगत कराकर मौके पर बुलाया।
Controversy over sacrifice: मिली जानकारी के मुताबिक गुरुवार शाम को अचानक 60-70 से ज्यादा लोगों को लेकर पीछे रणचंडी मंदिर के पास स्थित सीढ़ी से भेड़ की बलि देने के लिए ऊपर पहुंच गए। बताया जा रहा है कि आदिवासी समाज का अगुवा बनकर भवानी बहादुर बलि देने की प्रथा को जायज ठहराने लगे। इसके बाद विवाद खड़ा हो गया। खबर लगते ही डोंगरगढ़ एसडीएम और एसडीओपी आशीष कुंजाम दलबल के साथ ऊपर मंदिर पहुंचे। ट्रस्ट का कहना है कि डोंगरगढ़ मंदिर में बलि देने का रिवाज नहीं है। ऐसे में बलि देना एक तरह से धार्मिक भावनाओं को भड़काने जैसा है। आखिरकार प्रशासन के अडिग रहने से आदिवासी समाज के युवकों और भवानी बहादुर को अपना फैसला टालना पड़ा। इस संबंध में एसडीओपी श्री कुंजाम ने बताया कि इस मामले को जांच में लिया गया है। वहीं आदिवासी समाज की संलिप्तता को लेकर भी सही जानकारी जुटाई जा रही है।

Controversy over sacrifice: राजकुमार भवानी बहादुर सिंह ने स्पष्ट किया कि वे बलि देने नहीं गए थे, बल्कि कुल की पारंपरिक पूजा पद्धति के अनुसार “गढ़ माता” की आराधना कर रहे थे। उन्होंने कहा — “हमारे कुल में दो नवरात्र होते हैं। एक नवरात्र पूरा होता है, तो दूसरे में कोई बाधा या मृत्यु जैसी घटना घट जाती है। बैगा पद्धति से यह पूजा आवश्यक है ताकि गढ़ माता शांत रहें। हमें सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की जानकारी है — हम बलि देने नहीं गए थे, बस अपनी परंपरा के अनुसार पूजा कर रहे थे। राजकुमार ने कहा कि हमारे दादा राजा बीरेन्द्र बहादुर सिंह ने यह मंदिर ट्रस्ट को संचालन के लिए दिया था, मालिकाना हक के लिए नहीं। अगर हमारी पूजा पद्धति से ट्रस्ट या प्रशासन को दिक्कत है, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रशासन यह तय करे कि क्या हमें अपनी संस्कृति छोड़ देनी चाहिए और किसी बाहरी के अनुसार पूजा करनी चाहिए?
Controversy over sacrifice: राजकुमार ने यह भी कहा कि “डोंगरगढ़ का पहाड़ किसी की निजी संपत्ति नहीं है, यह जनआस्था का स्थल है। हम मां की पूजा करने गए थे, बलि देने नहीं। प्रशासन ने गलतफहमी में पूजा में बाधा डाली। डोंगरगढ़ एसडीएम एम भार्गव ने बताया कि सूचना मिलने पर टीम मौके पर पहुंची और स्थिति को शांति से संभाला गया। उन्होंने कहा, “मां बम्लेश्वरी मंदिर परिसर में किसी प्रकार की पशु बलि की अनुमति नहीं है। हमें बलि की कोशिश की सूचना मिली थी, लेकिन मौके पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। श्रद्धालु पारंपरिक पूजा कर रहे थे, उन्हें समझाकर शांतिपूर्वक नीचे भेजा गया।”

आदिवासी समाज-ट्रस्ट की बुलाई बैठक
Controversy over sacrifice: मंदिर परिसर में बढ़ते टकराव के चलते प्रशासन ने आदिवासी समाज और ट्रस्ट के बीच एक बैठक बुलाई है। प्रशासन बारी-बारी से दोनों पक्षों से बातचीत करेगा। इसके बाद एक साझा बैठक कर मामले को सुलझाने का प्रयास करेगा। बताया जा रहा है कि पुलिस को दीगर जिलों से भी आदिवासी युवकों की मौजूदगी की खबर है। यानी प्रशासन को इस बात का अंदाजा है कि आने वाले दिनों में भी विवाद गहरा सकता है। ऐसे में प्रशासन स्पष्ट रूप से इस मामले को पूरी तरह से सुलझाने की कोशिश में है। बताया जा रहा है कि आदिवासी समाज द्वारा ट्रस्ट को लगातार चुनौती दे रहा है।गौरतलब है कि पिछले दिनों नवरात्र के दौरान आदिवासी समाज नीचे स्थित मंदिर के गर्भगृह में भी घुस गया था। जिसकी शिकायत ट्रस्ट ने प्रशासन और पुलिस से की है।

