बिलासपुर। Death’ in police custody: हिरासत में लिए गए युवक की मौत के मामले में टीआई, दो आरक्षक एवं एक सैनिक को जस्टिस संजय के अग्रवाल एवं जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की डीबी ने गैरइरादतन हत्या का दोषी पाया है। कोर्ट ने आरोपियों को निचली अदालत से सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को 10 वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया है।
Death’ in police custody: जांजगीर-चांपा जिले के मुलमुला थाने की पुलिस को 17-9-2016 को देवेंद्र कुमार साहू ऑपरेटर, सीएसपीडीसीएल, विद्युत उपकेंद्र, नरियरा ने सूचना दी कि सतीश नोरगे निवासी ग्राम नरियरा, उपकेंद्र नरियरा में शराब पीकर उपद्रव कर रहा है। जिसे रोज़नामचा में दर्ज किया गया। इसके बाद तत्कालीन थाना प्रभारी जे.एस. राजपूत कांस्टेबल दिलहरन मिरी और सुनील ध्रुव को साथ लेकर उप-स्टेशन नरियरा पहुँचे। उन्होंने देखा कि सतीश नोरगे नशे की हालत में है और उसके मुँह से शराब की अत्यधिक गंध आ रही है।
Death’ in police custody: सतीश नोरगे का नियमानुसार सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पामगढ़ में चिकित्सीय परीक्षण कराया गया। डॉ. श्रीमती रश्मि दहिरे ने एमएलसी की और पाया कि सतीश नोरगे नशे की हालत में था, मुँह से शराब की अत्यधिक गंध आ रही थी, आाँखें लाल थीं और वह ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहा था। पुलिस ने उसे प्रतिबंधित धारा 107, 116 के तहत गिरफ्तार कर परिजनों को गिरफ्तारी की सूचना दी।
Death’ in police custody: दूसरे दिन सुबह परिजन को उसके बीमार होने पर अस्पताल ले जाने की जानकारी दी गई। पामगढ़ अस्पताल में जांच उपरांत डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस हिरासत में युवक की मौत के बाद परिजन व आम लोगों ने हंगामा कर मामले की जांच एवं दोषी पुलिस कर्मियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराने की मांग की। जांच उपरांत इस मामले में जांजगीर न्यायालय में चालान पेश किया गया।
Death’ in police custody: विशेष सत्र परीक्षण संख्या 27/2016 में ’’खाकी वर्दीधारी’’ व्यक्तियों को दोषी ठहराया गया।अदालत ने तत्कालीन टीआई मुलमुला जितेंद्र सिह राजपूत, सुनील ध्रुव कांस्टेबल (ए-2), दिलहरन मिरी कांस्टेबल और राजेश कुमार सैनिक को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 सहपठित धारा 34 के तहत आजीवन कारावास और 2000/- प्रत्येक का जुर्माना भरने की सजा सुनाई। सजा के खिलाफ आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की।
जस्टिस संजय के अग्रवाल एवं दीपक कुमार तिवारी की डीबी ने सुनवाई बाद सभी आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग 2 के अंतर्गत अपराध का दोषी पाया। डबल बेंच ने आरोपियों की धारा 302 के तहत मिली सजा को धारा 34 के साथ पठित धारा 304 भाग 2 के तहत किए गए अपराध की सजा में परिवर्तित कर दिया। उन्हें दी गई सामान्य आजीवन कारावास की सजा रद्द कर परिवर्तित दोषसिद्धि के लिए दस वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

