बिलासपुर।  Relief to corporation employees:  हाई कोर्ट ने अनुकंपा पर नियुक्त कर्मचारियों को नौकरी से हटाने के बिलासपुर नगर निगम आयुक्त के आदेश को रद्द कर दिया है। जस्टिस एनके व्यास के सिंगल बेंच ने सभी याचिकाकर्ताओं को नौकरी में वापस रखने का आदेश दिया है। सिंगल बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि इस पूरे मामले में अधिकारियों की मनमानी और निरंकुशता झलकती है, जिसका उद्देश्य याचिकाकर्ता के वैध दावे को नकारना है।

Relief to corporation employees:    कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को सशर्त राहत दी है, कोर्ट ने अपने फैसले में साफ लिखा है कि यह स्पष्ट किया जाता है कि याचिकाकर्ता पिछले वेतन के हकदार नहीं होंगे, हालांकि, उसकी वरिष्ठता उसकी नियुक्ति की प्रारंभिक तिथि से बिना किसी सेवा अंतराल के गिनी जाएगी। उपरोक्त अवलोकन और निर्देश के साथ, रिट याचिका स्वीकार की जाती है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता मनोज कुमार सिंह ने पैरवी की।

Relief to corporation employees:   रिट याचिकाओं के माध्यम से याचिकाकर्ताओं ने बिलासपुर नगर निगम के कमिश्नर द्वारा 11 सितंबर-2025 को पारित आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। नगर निगम कमिश्नर ने 10 जनवरी 2025 के आदेश के माध्यम से दी गई अनुकंपा नियुक्ति को इस आधार पर रद्द कर दिया गया है कि राज्य सरकार द्वारा अनुमोदन प्रदान नहीं किया गया है।

Relief to corporation employees:   मामले की प्रारंभिक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने शहरी प्रशासन एवं विकास निदेशक को नोटिस जारी कर हलफनामा के साथ जवाब पेश करने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट के निर्देश के मद्देनजर निदेशक ने शपथ पत्र के साथ जवाब पेश किया था। पेश जवाब में बताया कि शहरी प्रशासन एवं विकास विभाग को शहरी निकायों से अनुकंपा नियुक्ति के कुल 96 मामले प्राप्त हुए, जिनकी अवधि 3 से 5 वर्ष तक थी। इन मामलों की जांच की गई और इन्हें प्रशासन विभाग को अग्रेषित किया गया। बाद में, सामान्य प्रशासन से अनुमोदन प्राप्त होने के बाद 29 मामलों को मंजूरी दी गई। स्थाई मंजूरी के लिए, कोरबा नगर निगम से 08 जनवरी 2025 को प्राप्त हुआ।

Relief to corporation employees:   सामान्य प्रशासन विभाग के 14 जून 2013 के परिपत्र में स्थाई मंजूरी का कोई प्रावधान नहीं है। विभाग प्रमुख ऐसी मंजूरी देने के लिए सक्षम प्राधिकारी नहीं हैं। जवाब में यह भी बताया कि अनुकंपा नियुक्ति के लिए सक्षम प्राधिकारी संबंधित नगर निगम आयुक्त हैं। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि अफसर द्वारा पेश हलफनामे को सरसरी तौर पर पढ़ने से यह स्पष्ट है कि निदेशक ने अनुमोदन अस्वीकार करने का कोई कारण नहीं बताया है। कारण न बताने से अधिकारियों की मनमानी और निरंकुशता झलकती है, जिसका परिणाम याचिकाकर्ता के वैध दावे को नकारना होता है। यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि अनुकंपा नियुक्ति पर राज्य सरकार द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार ही विचार किया जाना चाहिए। यह न्यायालय नीति में कोई शब्द जोड़ या घटा नहीं सकता जिससे उसके सामंजस्यपूर्ण अर्थ में बाधा उत्पन्न हो। लिहाजा याचिकाकर्ता के मामले की जांच केवल 14. जून 2013 की नीति के अनुसार ही की जानी चाहिए।

Relief to corporation employees:   जस्टिस एनके व्यास ने अपने फैसले में लिखा  कि 9 सितंबर 2025 का विवादित आदेश, याचिकाकर्ता से संबंधित भाग में, रद्द किया जाता है। याचिकाकर्ता को चपरासी के पद पर पुनः नियुक्त करने का निर्देश दिया जाता है। कोर्ट ने कहा, यह स्पष्ट किया जाता है कि याचिकाकर्ता पिछले वेतन के हकदार नहीं होंगे, हालांकि, उसकी वरिष्ठता उसकी नियुक्ति की प्रारंभिक तिथि से बिना किसी सेवा अंतराल के गिनी जाएगी। उपरोक्त अवलोकन और निर्देश के साथ, रिट याचिका स्वीकार की जाती है।
इन कर्मचारियों को मिली राहत
नीता ठाकुर चपरासी , अन्नपूर्णा चपरासी,बमो. यूनुस चपरासी, गीता श्रीवास चपरासी, मीना पाल चपरासी, हसीना बानो चपरासी, प्रदीप बघेल चपरासी , शेख अमीन उल्लाह चपरासी, रजनी गुप्ता चपरासी, मो. यूनुस खान चपरासी।

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