डॉ. ओम प्रकाश भारती
(नदी एवं जल विशेषज्ञ)
संयुक्त राष्ट्र ने 1992 में रियो डि जेनेरियो के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया, तब से प्रतिवर्ष विश्व समाज जल दिवस मनाता आ रहा है। आज विश्व के 1.6 अरब लोगों को पीने का स्वच्छ जल नहीं मिल पा रहा है। जल के संरक्षण तथा सभी को स्वच्छ जल उपलब्ध कराना आज की सबसे बड़ी चुनौती है। राष्ट्रीय जलनीति 1987 के अनुसार, जल प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। यह मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता है और बहुमूल्य संपदा है। प्रकृति ने हवा और जल प्रत्येक जीव के लिए निःशुल्क प्रदान किए हैं। जल सबको चाहिए और इस पर सबका अधिकार होना चाहिए। लेकिन आज वर्चस्ववादियों ने जल पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया है। आम आदमी गंदा पानी पीने के लिए मजबूर है। जल में आवश्यकता से अधिक खनिज पदार्थ, अनावश्यक लवण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ, कल-कारखानों, औद्योगिक इकाइयों तथा अन्य जल संयंत्रों से निकले अपशिष्ट, मलमूत्र, मृतजीवी जन्तु, कूड़ा-करकट आदि नदियों, झीलों तथा सागरों में डाले जाने से जल प्रदूषित हो रहा है। ‘ग्लोबल वार्मिंग’ तथा विकास के महत्वाकांक्षी योजनाओं के कारण नदियां और जलाशय शुख रहे हैं । केवल भारत में 200 से अधिक नदियां लुप्त होने के कगार पर हैं । नीति आयोग की रिपोर्ट में बातें तो खरी हैं: “यह गहरी चिंता की बात है कि भारत में साठ करोड़ से अधिक लोग ज़्यादा से लेकर चरम स्तर तक का जल नहीं प्राप्त होने का दबाव झेल रहे हैं। भारत में लगभग 70 फीसदी जल प्रदूषित है, जिसकी वजह से पानी की गुणवत्ता के वैश्वविक सूचकांक में भारत 122 देशों में 120वें स्थान पर है।
धरती पर उपलब्ध पानी का अधिकांश भाग (97. 4 प्रतिशत) समुद्री खारा जल है, जो हमारे पीने लायक नहीं है। इसके बाद थोड़ा पानी (1.8 प्रतिशत) ध्रुवों की बर्फ के रूप में विद्यमान है। पीने लायक मीठा पानी सारे पानी का केवल 0.8 प्रतिशत है जो हम रोजमर्रा के उपयोगों में लाते हैं और वह भी प्रदूषित हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के आँकड़ों के अनुसार 6 अरब की आबादी वाली दुनिया में हर छठा व्यक्ति स्वच्छ जल से वंचित है। पिछले सदीमें विश्व जनसंख्या तीन गुनी बढ़ चुकी है और इसी अवधि में पानी की अवश्यकता 6 गुनी बढ़ चुकी है। अनुमानतः वर्ष 2050 तक संसार का हर चौथा आदमी पानी की समस्या झेलेगा। अगले 50 वर्षों के दौरान 60 देशों की 7 अरब आबादी को पर्याप्त जल मुहैया नहीं हो पाएगा।
भारत में जल संकट को लेकर उपग्रह प्रणाली का अध्ययन रिपोर्ट काफी डराने वाली है। रिपोर्ट के अनुसार भारत, मोरक्को, इराक और स्पेन में सिकुड़ते जलाशयों की वजह से इन चार देशों में आने वाले समय में नलों से पानी गायब हो सकता है। दुनिया के 5 लाख बांधों के लिए पूर्व चेतावनी उपग्रह प्रणाली बनाने वाले डेवलपर्स के अनुसार भारत, मोरक्को, इराक और स्पेन में जल संकट ‘डे ज़ीरो’ तक पहुंच जाएगा। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में विश्व की 17 प्रतिशत जनसंख्या रहती है, जबकि इसके पास विश्व के शुद्ध जल संसाधन का मात्र 4 प्रतिशत ही है। किसी भी देश में अगर प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1700 घन मीटर से नीचे जाने लगे तो उसे जल संकट की चेतावनी और अगर 1000 घन मीटर से नीचे चला जाए, तो उसे जल संकटग्रस्त माना जाता है। भारत में यह फिलहाल 1544 घन मीटर प्रति व्यक्ति हो गया है, जिसे जल की कमी की चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। नीति आयोग ने यह भी बताया है कि उपलब्ध जल का 84 प्रतिशत खेती में, 12 प्रतिशत उद्योगों में और 4 प्रतिशत घरेलू कामों में उपयोग होता है।
पृथ्वी पर उपलब्ध कुल पानी का 2.6 फीसदी ही साफ पानी है। और इसका एक फीसदी पानी ही मनुष्य इस्तेमाल कर पाते हैं। वैश्विक पैमाने पर इसी पानी का 70 फीसदी कृषि में, 25 फीसदी उद्योगों में और पांच फीसदी घरेलू इस्तेमाल में निकल जाता है। भारत में साढ़े सात करोड़ से ज़्यादा लोग पीने के साफ पानी के लिए तरस रहे हैं। नदियां प्रदूषित हैं और जल संग्रहण का ढांचा चरमराया हुआ है। ग्रामीण क्षेत्र में पहले से ही पानी का संकट हो चुका है।
भारत में बढ़ते हुए जल संकट के कई कारण हैं । भारत में वर्तमान कानून के तहत भूमि के मालिक को जल का भी मालिकाना हक दिया जाता है, जबकि भूमिगत जल साझा संसाधन है। बोरवेल /पंप से धरती के गर्भ से अंधाधुंध जल खींचा जा रहा है,इसके लिए ठोस कानून और नीति बनने चाहिए। हमें चाहिए सरकार द्वारा ‘कैच द रेन’ योजना का अनुकरण कर अधिक से अधिक वर्षा जल को एकत्र करें और धरती के नीचे भेजें। राजनैतिक एवं प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी, गलत प्राथमिकताएँ, जनता की उदासीनता उससे भी ऊपर, समाज अपने दायित्व से पलायन कर रहा है। जल के उपयोग तथा भूजल की रिचार्जिंग पर समुचित ध्यान देना होगा। झील, तालाबों, नदियों और अन्य जल संसाधनों पर समाज का सामूहिक अधिकार होना चाहिए। इनके निजीकरण पर रोक लगनी चाहिए। स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालय तक के पाठ्यक्रम में जल संरक्षण तथा प्रबंधन जैसे विषय को शामिल किए जाने चाहिए। नदियों और नालों पर चैक डैम बनाए जाए, खेतों में वर्षा पानी को संग्रहीत किया जाए।खेती में उन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिनके उत्पादन में कम पानी की आवश्यकता होती है। वर्षा के जल को संग्रहीत करने हेतु टैंकों, चेक-डैम और तालाबों आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए। नुक्कड़ नाटकों, अखबारों तथा टेलीविज़न आदि के माध्यम से लोगों में जागरूकता लनी होगी।
जल संकट का विकट वैश्वविक दौर चल रहा है। जल का कोई विकल्प भी नहीं है। जल की अनिवार्यता और अपरिहार्यता मनुष्य समेत सृष्टि के प्रत्येक जीव के लिए है। मानव का अस्तित्व जल पर ही निर्भर है।जल है तो जीवन है, खाद्यान है, वनस्पतियां हैं। जल, जंगल और ज़मीन एक दूसरे से आंतरिक रूपों से जुड़ा है। जल संरक्षण से ही पर्यावरण संरक्षण है। जल का पुरर्भरण करना ही जल का उत्पादन करना है। मानव के लिए जल की आवश्यकता किसी अन्य आवश्यकता से अधिक महत्वपूर्ण है। मतलब यही कि ‘जल है तो कल है।’
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