रायपुर । छत्तीसगढ़ में 76% आरक्षण वाले विधेयक पर पेंच फंसता हुआ नजर आ रहा है। राज्य विधानसभा में कल ही विधेयक पास हुआ है। ऐसी संभावना थी कि राज्यपाल आज ही इस पर हस्ताक्षर कर देंगी, लेकिन उन्होंने कहा है कि विधिक सलाहकार अभी अवकाश पर हैं, उनसे सलाह लेने के बाद ही वे हस्ताक्षर करने पर विचार करेंगी। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट 50% से अधिक आरक्षण को पहले ही असंवैधानिक करार दे चुका है।
राज्यपाल अनुसुइया उइके ने इससे पहले कहा था कि आरक्षण के मुद्दे पर राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने पर सहमति उन्होंने दी थी, वह चाहती हैं कि आरक्षित वर्गों को आरक्षण का पूरा लाभ मिले। विधेयक पर हस्ताक्षर से पहले वह विधिक सलाहकार से चर्चा करना चाहती है। वह अभी अवकाश पर हैं उनके आने के बाद इस पर चर्चा होगी और फिर वह हस्ताक्षर करने पर विचार करेंगी।

इधर भारतीय जनता पार्टी 76% आरक्षण से संतुष्ट नहीं है। उसका कहना है कि अनुसूचित जनजाति को 32% अनुसूचित जाति को 16% ओबीसी को 27% और सामान्य वर्ग के कमजोर वर्गों को 10% आरक्षण मिलना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो आरक्षण 76 से बढ़कर 85% हो जाएगा। देश के किसी भी राज्य में इतना आरक्षण नहीं है।
राज्य सरकार चाहती थी कि राज्यपाल अनुसूया उइके इस विधेयक पर हस्ताक्षर कर दें। सरकार के 5 मंत्रियों ने इस सिलसिले में आज मुलाकात भी की थी। उन्होंने मंत्रियों को बताया की विधि सलाहकार के अवकाश से लौटने के बाद वह हस्ताक्षर करने पर विचार करेंगी। एक मामला इस विधेयक के प्रावधानों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का भी है। नौवीं अनुसूची में शामिल विषयों की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती। सरकार चाहती है कि आरक्षण के नए प्रावधानों को कोई कोर्ट में चुनौती ना दे सके। इसके लिए उसने राज्य विधानसभा के सभी सदस्यों से इसके लिए केंद्र सरकार से अनुरोध करने की अपील भी की है।

इस विधेयक पर जब तक राज्यपाल का हस्ताक्षर नहीं हो जाता और जब तक आरक्षण के नए प्रावधानों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल नहीं कर लिया जाता तब तक कहा नहीं जा सकता कि राज्य में आरक्षण की आगे क्या स्थिति होगी।

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