फिजी के विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित करने लिया गया संकल्प
बिलासपुर( Fourthline) ।हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित करना है। हाल ही में फिजी में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में यह संकल्प पारित किया गया । बिलासपुर के अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरुण दिवाकर नाथ बाजपेई इस सम्मेलन में शामिल हुए ।आज प्रेस क्लब के पहुना कार्यक्रम में उन्होंने फ़िजी में हुए अपने अनुभव साझा किए।
डॉ. बाजपेई ने बताया हिंदी सम्मेलन की शुरुआत 1975 से हुई । दूसरा हिंदी सम्मेलन 1978 में मॉरीशस में हुआ । इस बार फिजी में हुए हिंदी सम्मेलन में मॉरीशस , सूरीनाम , कनाडा सिंगापुर , त्रिनिदाद और टोबैगो के ढाई हजार प्रतिनिधि शामिल हुए। इस अवसर पर हिंदी विश्व अखबार भी निकाला गया।
उन्होंने बताया कि फ़िजी के लोगों में हिंदी के लिए जबरदस्त प्रतिबद्धता है। यहां 37 फ़ीसदी लोग हिंदी में काम करते हैं , लिखते हैं , बोलते हैं। वहां के लोगों में भारत के संस्कारों के प्रति बहुत आदर है और वे भारत के सारे संस्कार सीखना चाहते हैं ।उन्होंने कहा अब तक के हिंदी सम्मेलन साहित्य केंद्रित होते थे ।पहली बार फिजी में सोशल साइंस को आधार बनाया गया। इस बार अनुवाद पर गहरी चर्चा हुई। अनुवाद कैसे हो कौन से शब्द है ,जिनका अनुवाद नहीं हो पा रहा है। इस बार टेक्नोक्रेट और कंप्यूटर विशेषज्ञ भी सम्मेलन में शामिल हुए । इस मौके पर कंठस्थ नाम का एक ऐप भी लोकार्पण हुआ जिसमें हर भाषा के शब्द हैं। सम्मेलन में यही बात उभर कर आई कि हिंदी को विश्व भाषा के रूप में कैसे स्थापित किया जाए क्योंकि 40 फ़ीसदी देशों में हिंदी चलती है ।उन्होंने कहा भारत के बीज मंत्रों का अनुवाद नहीं होना चाहिए कृत्रिम मेघा को ज्ञान का सहयोगी होना चाहिए ना कि हावी होना चाहिए। शब्द वह होते हैं ,

जो उपयोग होते होते मंजते हैं । उन्होंने कहा अनुवाद की अपनी प्रासंगिकता है ।यदि अनुवाद ना होता तो टैगोर को नोबेल प्राइज नहीं मिल पाता ।।आज के अनुवादक पहले साहित्य को आत्मसात करें फिर अनुवाद करें । भाषाओं में परस्पर समन्वय हो ।उन्होंने बताया फिजी में भारतीय मूल के गिरमिटिया मजदूर सबसे पहले गए , जिन्हें अंग्रेजों ने भेजा था उन्होंने जाकर वहां हिंदी की नींव रखी। फ़िजी के गांव-गांव में रामायण गीता पढ़ी जाती है और भारत के समान ही त्यौहार मनाए जाते हैं।

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