रायपुर। CG EXCISE POLICY: छत्तीसगढ़ में शराब बिक्री की पुरानी व्यवस्था फिर लागू होगी। शराब दुकानों को ठेके पर देने की पुरानी व्यवस्था बहाल करने पर सरकार विचार कर रही है। इस व्यवस्था में शराब के शौकीनों को जहां पसंदीदा ब्रांड की शराब पहले के तरह मिलने लगेगी, वहीं यह सस्ती भी होगी।
करीब दशक भर पहले छत्तीसगढ़ में शराब दुकानों के ठेके होते थे। देशभर में मुख्य मार्गों से शराब की दुकानें हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद छत्तीसगढ़ सरकार की आबकारी नीति की शर्तों पर शराब ठेकेदारों ने दुकानें ठेके पर लेने से हाथ खड़े कर दिए। उनका मानना था कि इससे उन्हें नुकसान होगा। जब बात नहीं बनी तो राज्य सरकार ने शराब व्यवसाय को अपने नियंत्रण में ले लिया और शराब दुकानों के ठेके बंद हो गए। उसके बाद से एक निगम का गठन कर शराब की बिक्री पूरे राज्य में सरकार के नियंत्रण में हो रही है। पिछली कांग्रेस सरकार में इस व्यवस्था में शराब का करीब 2500 करोड़ का घोटाला भी सामने आया, जिसकी जांच-पड़ताल चल रही है। सरकार इस तरह के किसी घोटाले की गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती इसलिए आबकारी नीति में सुधार पर वह विचार कर रही है।
CG EXCISE POLICY: राज्य में सत्ता में दोबारा आई भाजपा सरकार को लगता है आबकारी नीति बदलने की जरूरत है। शराब व्यवसाय को सरकार के लिए राजस्व प्राप्ति का बेहतर साधन बनाने के साथ इसे मुक्त बाजार व्यवस्था के अधीन लाने की कोशिश की जा सकती है। यह व्यवस्था सरकार के साथ ही ग्राहकों के भी हित में होगी। शराब व्यवसाय को पहले की तरह ठेके पर दे दिया जाएगा। अभी हाल में ही सरकार ने अहातों के ठेके कराने का फैसला किया है। मौजूदा व्यवस्था में सरकार को शराब दुकानों के अहातों से किसी तरह का कोई राजस्व नहीं मिलता। नई व्यवस्था में अहातों से भी सरकार को राजस्व की प्राप्ति होने लगेगी।
छत्तीसगढ़ के पहले वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने बनाई थी नई आबकारी नीति
CG EXCISE POLICY; अलग छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद सत्ता संभालने वाली कांग्रेस की अजीत जोगी सरकार के वित्त मंत्री कोरिया कुमार रामचंद्र सिंहदेव ने नई आबकारी नीति लागू की थी। इस नीति ने शराब सिंडीकेट को खत्म कर दिया और शराब ठेकेदारों में खुली प्रतिस्पर्धा की राह तैयार कर दी। इससे सरकार के खजाने में आबकारी कर के रूप में पहले से कई गुना राजस्व आने लगा। 2003 के चुनावों के बाद जब पहली बार डा. रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी तो उसने भी इस आबकारी नीति को जारी रखा। शराब बिक्री पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शराब ठेकेदारों को यह आबकारी नीति नुकसानदेह लगने लगी और उन्होंने शराब दुकानों को ठेके पर लेने से हाथ खड़े कर दिए। दरअसल , मुख्य मार्गों से शराब की दुकानें हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें लग रहा था कि बिक्री कम हो जाएगी और उनके लिए भारी-भरकम लाइसेंस फीस जमा करना मुश्किल हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार के नियंत्रण में भी पसंदीदा ब्रांड की सरकार नहीं मिलने और कीमतें बढ़ने के बाद भी शराब की बिक्री कम नहीं हुई। सरकार को लग रहा है कि शराब ठेकेदार पुरानी व्यवस्था में फिर से रूचि लेंगे और इसे लागू किया जाना संभव होगा जो सरकार के लिए भी फायदेमंद होगी और शराब की दुकानें चलाने की झंझट भी नहीं रहेगी।