बिलासपुर। Live in relationship: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने लिव इन रिलेशनशिप (Live-in relationship) को भारतीय संस्कृति के लिए कलंक बताते हुए मुस्लिम पिता और हिंदू माता से उत्पन्न बच्चे के संरक्षण का अधिकार पिता को देने से इनकार कर दिया।
Live in relationship: जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस. अग्रवाल की बेंच ने पहले से विवाहित अब्दुल हमीद सिद्दीकी (43) और 36-वर्षीया एक हिंदू महिला के लिव इन रिलेशनशिप (Live-In Relationship) से जन्म लिए एक बच्चे के संरक्षण का अधिकार पिता को देने से इनकार कर दिया।
Live in relationship: बेंच ने कहा है, समाज के कुछ वर्गों में लिव इन रिलेशनशिप भारतीय संस्कृति में कलंक के रूप में जारी है। इस तरह का संबंध एक आयातित धारणा है, जो भारतीय रीति की सामान्य अपेक्षाओं के विपरीत है। अदालत ने कहा – एक विवाहित व्यक्ति के लिए लिव इन रिलेशनशिप से बाहर आना बहुत आसान है और ऐसे मामलों में उक्त कष्टप्रद लिव इन रिलेशनशिप में (Live-in relationship) धोखा खा चुकी महिला की वेदनीय स्थिति और उक्त रिश्ते से उत्पन्न संतानों के संबंध में अदालत अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती्।
Live in relationship: उच्च न्यायालय ने दो अलग-अलग धर्मावलंबियों के बीच के ऐसे रिश्ते की पृष्ठभूमि में स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत कानून के प्रावधानों को किसी भी अदालत के समक्ष तब तक वैध ठहराने की दलील नहीं दी जा सकती, जब तक कि इसे (कानूनी) प्रथा के रूप में पेश और साबित नहीं किया जाता है।
Live in relationship: बस्तर क्षेत्र के दंतेवाड़ा जिले का निवासी अब्दुल हमीद सिद्दीकी तीन वर्ष से एक हिंदू महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में था। उसकी पहली पत्नी से तीन बच्चे भी हैं। लिव-इन में रहते हुए हिन्दू महिला ने अगस्त 2021 में एक बच्चे को जन्म दिया, लेकिन बाद में अचानक 10 अगस्त 2023 को महिला अपने बच्चे के साथ लापता हो गई। हमीद सिद्दीकी ने वर्ष 2023 में उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की, जिसकी सुनवाई के दौरान महिला अपने माता-पिता एवं बच्चे के साथ पेश हुई। महिला ने अदालत को बताया कि वह अपनी मर्जी से अपने माता-पिता के साथ रह रही है। इधर, बच्चे से नहीं मिलने देने पर सिद्दीकी ने कुटुम्ब अदालत, दंतेवाड़ा में अर्जी दायर की। उसने प्रार्थना की कि वह अपने बच्चे की परवरिश करने में सक्षम है, इसलिए उसे बच्चे को सौंप दिया जाए। कुटुम्ब अदालत ने उसकी अर्जी खारिज कर दी। सिद्दीकी ने इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की।
याचिका में थी गई थी ये दलील
Live In Relationship: याचिका में दलील दी गई थी कि उसने (सिद्दीकी ने) मुस्लिम कानून के तहत दूसरी शादी की है और उसका विवाह वैध है। उसने साथ ही बच्चे के संरक्षण का अधिकार हासिल करने का भी अनुरोध अदालत से किया।
उन्होंने बताया कि अदालत में महिला की तरफ से दलील दी गयी कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरा विवाह वैध नहीं है तथा लिव-इन रिलेशनशिप से उत्पन्न संतान पर उसका (सिद्दीकी का) हक नहीं बनता है। खंडपीठ ने इस मामले में सुनवाई के बाद कुटुम्ब अदालत के 13 दिसम्बर 2023 के निर्णय से सहमत होते हुए बच्चे के संरक्षण का अधिकार प्राप्त करने के लिए पेश अपील खारिज कर दी।

