• हाई कोर्ट के फैसले से बिलासपुर एयरपोर्ट के 4-सी विस्तार की सबसे बड़ी बाधा दूर
• चिन्हांकित 287 एकड़ जमीन पर एयरपोर्ट विस्तार का काम आगे बढ़ाने सरकार को निर्देश
• 4-सी एयरपोर्ट ,नाइट लैंडिंग सुविधा पर एएआई से जानकारी मांगी
बिलासपुर। Bilasa airport: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस राधा कृष्ण अग्रवाल की खंडपीठ ने बिलासपुर एयरपोर्ट के विकास की सबसे बड़ी बाधा जमीन की उपलब्धता की अनिश्चितता को दूर कर दिया ।खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि एक बार रक्षा मंत्रालय के द्वारा सेना के कब्जे वाली जमीन पर एयरपोर्ट विस्तार की सहमति देने के बाद अब उसे रद्द नहीं किया जा सकता । कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार के अधिवक्ताओं को कहा कि यदि कोई आपसी विषय है तो उसे दोनों सरकारें मिलकर सुलझाएं। इसके कारण बृहद जनहित के प्रोजेक्ट एयरपोर्ट विस्तार को रोका नहीं जा सकता।
Bilasa airport: इसके पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने अब तक इस मामले में हाईकोर्ट के द्वारा पारित आदेशों के उन अंशों को पढ़कर सुनाया, जिनके आधार पर यह स्पष्ट हो गया कि रक्षा मंत्रालय और सेना के द्वारा एयरपोर्ट विस्तार के लिए जमीन पर कार्य करने की अनुमति दी जा चुकी थी और इसके लिए कितनी राशि राज्य सरकार को देनी है इस पर ही आगे की बातचीत चल रही थी। जमीन का सीमांकन भी हो चुका है और अब केवल इस पर आगे एयरपोर्ट विस्तार का काम किया जाना है।
Bilasa airport: हाई कोर्ट पुराने आदेशों के अवलोकन से पाया कि एक से अधिक बार रक्षा मंत्रालय और राज्य सरकार सेना के कब्जे की जमीन को एयरपोर्ट विस्तार के लिए देने की सहमति दर्ज कर चुके हैं। सेना का ट्रेनिंग सेंटर वाला प्रोजेक्ट पहले ही ड्रॉप हो चुका है और पूरी 1012 एकड़ जमीन पिछले 12 साल से खाली पड़ी है । इसमें से 287 एकड़ जमीन एयरपोर्ट विस्तार के लिए चाहिए, जिस पर रनवे की लंबाई वर्तमान 1500 मीटर से बढ़ाकर अधिकतम 2885 मीटर की जा सके ताकि यहां बड़े बोइंग और एयरबस जैसे विमान उतर सके। ऐसा होने पर ही बिलासपुर एयरपोर्ट को 4-सी आईएफआर का दर्जा मिल सकेगा।
Bilasa airport: खंडपीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार को यह भी निर्देश दिए कि वह बिलासपुर एयरपोर्ट के विस्तार के काम को जारी रख सकती है और साथ ही 4-सी एयरपोर्ट बनाने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं उसकी जानकारी अगली सुनवाई के पहले मांगी है। वर्तमान में बिलासपुर एयरपोर्ट के रनवे की लंबाई केवल 1500 मीटर है, जिसके कारण 80 सीटर से बड़े विमान यहां उतर नहीं सकते। इन बड़े बोइंग और एयरबस विमान से ही कम समय में लंबी दूरी की यात्रा की जा सकती है। इस सुविधा से बिलासपुर एयरपोर्ट वंचित है। एक बार रनवे की लंबाई कम से कम 2200 हो जाए तब बोइंग और एयरबस जैसे विमान उतर सकेंगे। आगे इस रनवे का विस्तार 2885 मीटर तक किया जाना है जिससे कि बिलासपुर एयरपोर्ट अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए भी सक्षम हो जाएगा।
Bilasa airport: हाईकोर्ट ने बिलासपुर एयरपोर्ट पर चल रहे नाइट लैंडिंग संबंधी कार्यों की भी समीक्षा की और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को निर्देश दिए कि उसके द्वारा नाइट लैंडिंग के लिए आवश्यक डीवीओआर मशीन आयात किए जाने की क्या स्थिति है, उसे अवगत कराए। ग़ौरतलब है कि एएआई द्वारा इस कार्य के लिए 2 वर्ष का समय मांगा गया था जबकि याचिका कर्ताओं के साथ-साथ राज्य सरकार ने भी यह समय बहुत अधिक बताते हुए कहा था कि यह काम कम समय में पूरा किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं की ओर से हाई कोर्ट को यह भी बताया गया कि केंद्र सरकार को पूर्व में प्रस्तुत की गई बिलासपुर एयरपोर्ट विस्तार योजना में डीवीओआर स्थापना और नाइट लैंडिंग का कार्य 2024-25 में ही होने की बात कही गई है। हाई कोर्ट ने पूर्व से ही आयात के लिए आदेशित हो चुकी मशीनों में से एक मशीन प्राथमिकता के आधार पर बिलासपुर को दिए जाने हेतु संभावनाओं को पता लगाने का निर्देश एएआई को दिया है।
Bilasa airport: सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से डिप्टी सीजी रमाकांत मिश्रा, सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता रणवीर सिंह, एएआई की ओर से अनुमेह श्रीवास्तव, याचिकाकर्ताओं की ओर से संदीप दुबे, अमन पांडे आदि अधिवक्ता उपस्थित थे। हाईकोर्ट ने प्रथम याचिका कर्ता पत्रकार कमल दुबे की मृत्यु पश्चात उनके पुत्र माधव प्रसाद दुबे को याचिकाकर्ता बनाने का आवेदन भी स्वीकार किया। गौरतलब है कि इस याचिका के अलावा एक जनहित याचिका हाई कोर्ट प्रैक्टिसिंग एडवोकेट बार एसोसिएशन के द्वारा भी दायर की गई थी दोनों ही जनहित याचिकाओं की एक साथ सुनवाई होती है। अगली सुनवाई 2 सप्ताह बाद रखी गई है।