मुंबई। Bombay High court: बम्बई उच्च न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि श्रमजीवी पत्रकार ‘महाराष्ट्र मजदूर संगठनों की मान्यता और अनुचित श्रम प्रथाओं की रोकथाम अधिनियम’ के तहत कर्मचारियों की परिभाषा में नहीं आते हैं क्योंकि उन्हें एक विशेष दर्जा प्राप्त है।
Bombay High court: न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की खंडपीठ ने 29 फरवरी के अपने आदेश में कहा कि नतीजतन, संबंधित अधिनियम के तहत एक श्रमजीवी पत्रकार द्वारा दायर की गई शिकायत एक औद्योगिक अदालत के समक्ष सुनवाई योग्य नहीं होगी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि उन्हें श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक विशेष दर्जा प्राप्त है। इसलिए वह औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत अपने विवादों का निपटारा करा सकते हैं।
Bombay High court:यह फैसला दो श्रमजीवी पत्रकारों द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर सुनाया गया है। दरअसल, दो श्रमजीवी पत्रकारों ने उच्च न्यायालय में दायर याचिका में 2019 में औद्योगिक अदालत के आदेशों को चुनौती दी थी। औद्योगिक अदालतों ने श्रमजीवी पत्रकारों द्वारा दायर शिकायतों को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि श्रमजीवी पत्रकार अनुचित श्रम प्रथाओं की रोकथाम अधिनियम के तहत कर्मचारी या कामगार के दायरे में नहीं आते हैं।
Bombay High court: पीठ ने कहा कि श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम, 1955 ने पहले ही औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत विवाद समाधान के लिए एक तंत्र स्थापित कर दिया है।अदालत ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम के तहत उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त है और वे एक अलग वर्ग में आते हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अगर श्रमजीवी पत्रकार और कामगार के बीच कोई अंतर नहीं है तो ऐसा नहीं हो सकता कि श्रमजीवी पत्रकारों के पास विशेषाधिकार हों, जबकि गैर-श्रमजीवी पत्रकारों सहित अन्य कामगारों को इससे वंचित रखा जाए।”