अंबिकापुर। करीब 40 वर्ष पहले अविभाजित सरगुजा जिले के कुसमी वन परिक्षेत्र के सिविलदाग में पकड़े गए हाथी सिविल बहादुर की मंगलवार सुबह हाथी पुनर्वास केंद्र रामकोला में मौत हो गई। इसकी उम्र लगभग 72 वर्ष थी। कुसमी के सिविलदाग ग्राम में पकड़े जाने के कारण इसका नामकरण सिविल बहादुर रखा गया था। अत्यधिक आयु के कारण इसकी मौत हो गई। पोस्टमार्टम के बाद उसे दफना दिया गया।
उत्तर छत्तीसगढ़ में प्रवासी हाथियों के झारखंड से प्रवेश करने से पहले वर्ष 1988 में सबसे पहले एक हाथी कुसमी वन परिक्षेत्र में घुसा था। उस दौर में वन विभाग के साथ हाथी रेस्क्यू अभियान में लगे अमलेंदु मिश्रा ने बताया कि जंगली हाथियों के व्यवहार के अध्ययन में यह पुष्ट हो चुका है कि किसी भी नए क्षेत्र में जंगली हाथियों के समूह के प्रवेश करने से पहले दल का नेतृत्व करने वाला एक हाथी ही उस क्षेत्र में जाकर भौगोलिक परिस्थिति,आहार आदि के लिए क्षेत्र का भ्रमण करता है। रहवास के अनुकूल माहौल होने पर शेष हाथी बाद में आते है।
वर्ष 1988 में यह हाथी भी पहले कुसमी क्षेत्र में घुसा था। कई दिनों तक क्षेत्र में यह रूक गया था ,जिसे आबाद इलाके में घुसने और जनहानि के खतरे को देखते हुए इसे पकड़ लिया गया था। तब से यह वन विभाग की देखरेख में भी यह रह रहा था। आज इसकी आयु 72 वर्ष की हो गई थी। मंगलवार सुबह उसने अंतिम सांस ली। सिविल बहादुर को सबसे उम्रदराज हाथी माना जा रहा है जो पांच वर्षो से तमोर पिंगला अभ्यारण्य के रेस्क्यू सेंटर में रखा गया था।