विक्रम सिंह ठाकुर
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने हफ्ते में पांच दिनों का वर्किंग-डे लागू कर उम्मीद की थी कि इससे अधिकारी – कर्मचारियों की कार्यकुशलता बढ़ेगी, लेकिन सरकारी दफ्तरों में वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। अधिकारी – कर्मचारी समय पर दफ्तर तक नहीं आ रहे हैं, जिससे आम लोगों की परेशानी बढ़ गई है।
पांच दिनों का वर्किंग-डे लागू करते हुए सरकार ने सरकारी दफ्तरों के खुलने का समय सवेरे 10 बजे से कर दिया था। पहले यह समय 10.30 बजे से था। सरकार ने सोचा था कि हफ्ते में शनिवार – रविवार दो दिनों के एक साथ अवकाश के बाद जब अधिकारी- कर्मचारी दफ्तर आएंगे तो काम करने की उनमें अलग ऊर्जा होगी , लेकिन ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। लोगों की परेशानी जरूर बढ़ गई है। सरकार हफ्ते में दो दिनों शनिवार व रविवार की दो दिनों की नियमित छुट्टी घोषित करते हुए कर्मचारियों की सुविधा का ध्यान रखा और काम के घंटे भी नहीं बढ़ाए। इसके बाद भी अधिकारी – कर्मचारियों के समय पर दफ़्तर आने का समय बदला और न ही काम करने के उनके ढर्रे में ही सुधार हुआ।
पांच दिनों के वर्किंग-डे लागू होने के बाद सरकारी दफ्तरों में कामकाज परे पड़े असर का पता लगाने हम कलेक्टरेट पहले तो फ़ूड कंट्रोलर के दफ्तर में 10 बजे ताला लटक रहा था। थोड़ी देर बाद वहां भृत्य ताला खोलने पहुंचा। उसने दफ्तर की साफ – सफाई शुरू की। उसे पता था कि जब तक फ़ूड कंट्रोलर साहब आएंगे तब तक वह दफ्तर की साफ – सफाई कर लेगा।ऐसा रोज़ ही रहा है। अधिकारी – कर्मचारी 11 – 12 बजे तक दफ्तर पहुंच रहे हैं।
सरकारी कामकाज में सुधार लाने के लिए पांच दिनों का वर्किंग-डे लागू करते हुए सरकार ने कार्यालय प्रमुखों से कहा था कि वे अधिकारी – कर्मचारियों के समय से आंने- जाने पर नजर रखें। कुछ समय तक ऐसा किया भी गया, लेकिन फिर हाल पहले जैसा ही ही गया। कलेक्ट्रेट में 10 बजे से कुछ लोगो का आना शुरू हो गया है। कुछ लोग मिले भी जो अपने काम से पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि हफ्ते में पांच दिन ही सरकारी दफ्तर खुलने से भीड़ बढ़ गई है इसलिए वे पहले आ गए हैं ताकि काम उनका पहले हो। उन्होंने बताया कि इससे आम आदमी की परेशानी बढ़ी ही है। बस अधिकारी – कर्मचारियों की मौज है, सरकारी काम में इससे कोई सुधार नहीं हुआ।