रायपुर। High court order: हाईकोर्ट की डबल बेंच ने छत्तीसगढ़ सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) को निर्देश दिया है कि ‘7 नवंबर 2006 को जो अधिसूचना जारी कर ईओडब्ल्यू को आरटीआई पर जानकारी प्रदान करने से मुक्त करने का निर्णय वह त्रुटिपूर्ण है। भ्रष्टाचार और मानव अधिकारों के हनन से संबंधित सूचना देने से इस तरह की संस्था को मुक्त नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने इस आदेश के साथ तीन सप्ताह के भीतर छत्तीसगढ़ सामान्य प्रशासन विभाग को इस अधिसूचना में आवश्यक संशोधन कर ईओडब्ल्यू को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने का आदेश दिया है।’ हाईकोर्ट ने आरटीआई कार्यकर्ता राजकुमार मिश्रा की रिट याचिका पर यह फैसला सुनाया है।
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने ईओडब्ल्यू को यह निर्देश भी दिया है कि आरटीआई कार्यकर्ता राजकुमार मिश्रा के 15 नवंबर 2016 में प्रस्तुत किए गए सूचना के अधिकार का आवेदन का जवाब आज की स्थिति में इस आदेश के चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को प्रदान करें।
High court order: राजकुमार मिश्रा ने 15 नवंबर 2016 को सूचना का अधिकार के तहत एक आवेदन प्रस्तुत कर ईओडब्ल्यू से कुछ जानकारियां मांगी थी। इस संस्था ने इस आधार पर जानकारी प्रदान करने से इंकार कर दिया कि 7 नवंबर 2006 को उसे सूचना के अधिकार पर जानकारी प्रदान करने से मुक्त कर दिया है।
इसके बाद जीएडी की इस अधिसूचना को आरटीआई कार्यकर्ता मिश्रा ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के खंडपीठ के समक्ष यह कहते हुए चुनौती दी थी कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 24 की उपधारा 4 में उल्लेख है कि भ्रष्टाचार और मानव अधिकारों के हनन से संबंधित सूचना देने से किसी भी संस्था को मुक्त नहीं किया जा सकता। छत्तीसगढ़ सरकार की यह संस्था छत्तीसगढ़ राज्य में भ्रष्टाचार से संबंधित प्रकरणों की ही जांच करती है। इस तरह इस संस्था को सूचना के अधिकार से मुक्त नहीं किया जा सकता।
High court order: हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया था। हाईकोर्ट के नोटिस जारी करने पर राज्य सरकार ने इस रिट याचिका में जवाब प्रस्तुत किया गया। हाईकोर्ट ने यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता जनहित याचिकाएं प्रस्तुत करने के मामले में नए व्यक्ति नहीं है, इस कारण उनकी यह याचिका निरस्त की जाती है। इस पर राजकुमार मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट उनकी याचिका पर हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह इस प्रकरण को फिर से सुने। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के आधार पर बिलासपुर हाईकोर्ट ने इस याचिका की सुनवाई बेंच तीन में की गई। इसमें जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल ने याचिका को सुना और आदेश को 8 फरवरी 2024 को रिजर्व कर लिया गया। इस आदेश को 7 मार्च 2024 को खुली अदालत में जारी किया गया।

