पुराने वाद्य यंत्रों और इतिहास से रूबरू हुई नई पीढ़ी
बिलासपुर (Fourthline)। सिंधु कला उत्सव एक नए सांस्कृतिक भूगोल को प्रस्तावित कर रहा है । साहित्यकार सतीश जायसवाल ने सिंधु कला उत्सव का उद्घाटन करते हुए कहा सिंधु घाटी सभ्यता से सिंधु समाज को लोगों ने व्यापारी रूप में देखा है । इसकी संस्कृति का अध्ययन होना चाहिए। हम नई संस्कृति के साथ जुड़ रहे हैं और अध्ययन के नए रास्ते खुल रहे हैं।
कार्यक्रम में सर्वप्रथम बिलासपुर की महिलाओं ने बहराना की प्रस्तुति की । इसके बाद बच्चों ने अर्चित विरचित खेल और फुगड़ी का प्रदर्शन किया । फिर लाडा के माध्यम से सिंधी परिवारों के मिलन और पति -पत्नी की नोक -झोंक को प्रदर्शित किया गया। सिंधी समाज ने अपनी परंपरा जीवित रखने के लिए नई पीढ़ी को जानकारी देने के लिए इस उत्सव का आयोजन किया। पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ प्रस्तुति दी गई । कच्छ गुजरात से आए बुद्धा बेला की टीम और अजमेर से आए घनश्याम भगत ने पुरानी परंपरा की याद दिलाई । घनश्याम के भगत में गीत संगीत, नृत्य नाटक सब कुछ शामिल था। कच्छ के साथ कलाकार सिंधी लोक गीतों की प्रस्तुति देने आए बुद्धा वेला मारवाड़ा ने बताया कि पीढ़ी दर पीढ़ी लोकगीतों की परंपरा को बरकरार रखे हैं । यह चौथी पीढ़ी है । यह टीम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमिताभ बच्चन और सचिन तेंदुलकर के सामने भी प्रस्तुति दे चुकी है। मुख्य अतिथि डॉ ललित मखीजा ने कहा समूह में मिलकर करने से ही परंपराएं बनती हैं। कार्यक्रम का संचालन गरिमा शाहानी, नीरज जगयासी और श्री मखीजा ने किया। बिलासपुर के कलाकार राजेश परसरामानी ने सारंगी पर आकर्षक प्रस्तुति दी। भरत चंदानी ने कविता पाठ किया जो बेहद सराहा गया।

