अतुल कांत खरे

बिलासपुर (fourthline)। Loksabha elections: बिलासपुर लोकसभा सीट पर भाजपा अपने प्रत्याशी की घोषणा पहले  करके चुनाव प्रचार में आगे निकलने  कोशिश की है। उसके प्रत्याशी तोखन साहू महीनेभर से जनसंपर्क कर रहे हैं। इधर कांग्रेस ने भिलाई के दो बार के विधायक देवेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया है। इससे स्थानीय बनाम बाहरी भी यहां मुद्दा बन गया है।

Loksabha elections: छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण लोकसभा सीट बिलासपुर का चुनावी इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है । यहां पहले  लगातार सात बार कांग्रेस चुनाव  जीती और उसके बाद सात चुनावों में भाजपा जीतती आ रही है।  एक बार बाजी निर्दलीय प्रत्याशी के भी  हाथ लगी थी। चार बार चुनाव जीतकर भाजपा नेता पुन्नुलाल मोहले ने भाजपा के लिए बहुत अच्छी जमीन तैयार कर दी । इसके बाद भाजपा के लखनलाल साहू और उसके बाद अरुण साव ने जीत के इस सिलसिले को कायम रखा । इस बार तोखन साहू पर भाजपा ने दांव खेला है। भाजपा के लिए यह तीसरा चुनाव है जब पार्टी ने साहू समाज से किसी को प्रत्याशी बनाया है। 

Loksabha elections: वर्ष 1996 के चुनाव में भाजपा ने बिलासपुर सीट पर  कब्जा किया। पुन्नू लाल मोहले सांसद बने। उसके बाद पार्टी यहां से लगातार जीतती आई है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की भतीजी करुणा शुक्ला को कांग्रेस ने यहां से 2014 में प्रत्याशी बनाकर  बड़ा दांव खेला था , लेकिन उसका यह दांव भी नहीं चला। भाजपा  के लखनलाल साहू ने  उन्हें 175000 के रिकॉर्ड वोटों से हरा दिया ।पिछले चुनाव में अरुण साव ने अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव को 141000 मतो से पराजित किया था। बिलासपुर लोकसभा के लिए साहू और सतनामी  समाज के वोटर  महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। बिलासपुर में बिल्हा बेलतरा,  मस्तूरी,  कोटा,  तखतपुर और मुंगेली  जिले की मुंगेली और लोरमी  विधानसभा सीटें शामिल हैं ।बिलासपुर लोकसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या लगभग 20 लाख के करीब है।

ओबीसी पर दोनों का दांव

Loksabha elections: किसी स्थानीय नेता को प्रत्याशी  बनाने की बजाय इस बार कांग्रेस ने बाहर से प्रत्याशी बनाया  है। पार्टी बार-बार चेहरे बदलती रही है, लेकिन हर बार असफलता ही हाथ लगी है।भिलाई विधानसभा  सीट से दो बार विधायक चुने गए देवेन्द्र यादव पार्टी की राजनीति की दृष्टि से बड़ा चेहरा हैं। सबसे कम उम्र के महापौर के रूप में भी उनकी पहचान है। हालांकि उनकी उम्मीदवारी को लेकर कुछ नेता असंतोष जताने में भी पीछे नहीं हैं। एक नेता ने तो पार्टी के इस फैसले के खिलाफ अनशन पर बैठ गए थे। उनका कहना था कि यह जिले के नेताओं की उपेक्षा है। बाद में पार्टी नेताओं ने उन्हें मना लिया। वर्ष 2014 से लेकर अब तक भाजपा लगातार ओबीसी उम्मीदवार पर गांव लगा रही है। इस बार कांग्रेस ने भी देवेन्द्र यादव के रूप में ओबीसी उम्मीदवार ही उतारा है। बड़ा फर्क यह है कि साहू वोटरों के मुकाबले यादव वोटरों संख्या काफी कम है। साहू वोटरों की संख्या दस फीसदी के आसपास है तो यादव वोटर एक- डेढ़ फीसदी ही हैं।

64.4 फीसदी हुआ था मतदान

Loksabha elections: देखने वाली बात यह है कि कांग्रेस जातीय वोटरों के इस अन्तर को पाटने के लिए कौन सी रणनीति अपनाती है। पिछले चुनाव नतीजों पर गौर करें तो यही अन्तर हार-जीत के अन्तर में बदलता रहा है। पिछले चुनाव में भाजपा  प्रत्याशी अरुण साव को को 634569 वोट मिले थे तो कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव को 492796 वोट मिले थे। पिछले चुनाव में कुल वोट 12 लाख 9434 से वोट पड़े  थे, जो कुल  मतदाताओं का 64.4 फीसदी था। इस वर्ष 25 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था।

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