हृदेश केशरी
बिलासपुर । प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा छत्तीसगढ़ में हर महीने करोड़ों की अवैध लेवी वसूली के खुलासे के बाद केंद्र सरकार लिंकेज के नाम पर हो रही कोयले की हेराफेरी पर नकेल कसने जा रही है। सरकार नए साल से उद्योगों को लिंकेज का कोयला देना बंद कर सकती है। सरकार को बताया गया है कि उद्योग हर महीने लाखों टन लिंकेज का कोयला ओपन सेल से करीब आधे कीमत पर उठाकर उसकी हेराफेरी कर रहे हैं।यह कोयला काले बाज़ार में बिक रहा है और कोयला कारोबारी मालामाल हो रहे हैं।

कोयला कारोबार से जुड़े सूत्रों के अनुसार एसईसीएल से हर महीने उद्योगों को लाखों टन लिंकेज का कोयला दिया रहा है। पिछले महीने ही 19 लाख टन लिंकेज का कोयला उद्योगों ने उठाया। इस कोयले की कीमत ओपन सेल के कोयले से करीब आधी पड़ती है। कीमतों में इसी अंतर की वजह से बड़े पैमाने पर लिंकेज के कोयले की कालाबाजारी हो रही है। उद्योगों को प्रोत्साहन के लिए लिंकेज के तहत कोयला देने की व्यवस्था सरकार ने शुरू की थी। उद्योगों ने कोयले की कालाबाजारी शुरू कर दी। बड़ी संख्या में ऐसे उद्योग जो बीमार हैं या कागजों में जिनका संचालन हो रहा हैं, वे भी लिंकेज कोटे का पूरा कोयला उठा रहे हैं। ईडी ने छत्तीसगढ़ में करोड़ों की अवैध लेवी वसूली होने के इनपुट के आधार पर अपनी छापामार कार्रवाई में इस पर भी गौर किया है और केन्द्र सरकार तक लिंकेज के कोयले की हेराफेरी की बात पहुंचाई है।

सूत्रों के अनुसार सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है और उद्योगों को लिंकेज का कोयला देना बंद करने पर विचार कर रही है। अगले महीने से उद्योगों को लिंकेज का कोयला देना बंद किया जा सकता है ‌। कोयले की जो कालाबाजारी हो रही हो रही है उसमें एक् बड़ा हिस्सा लिंकेज के कोयले का होता है। लिंकेज और चोरी के कोयले से ही कोयले का कालाबाजार गुलजार है। इस पर कड़ाई से रोक लगा दी गई तो काला कारोबार खत्म हो सकता है। माना जा रहा है कि सरकार कड़ा फैसला लेने जा रही है। जिस तरह लेवी की अवैध वसूली में अधिकारियों की संलिप्तता पाई गई है उसी तरह लिंकेज के कोयले में भी उनकी भूमिका बताई जा रही है। बीमार और कागजों में चल रहे उद्योगों को भी लिंकेज का कोयला दिया जा रहा है।

क्या इसकी जांच-पड़ताल का कोई सिस्टम नहीं है ? इस सवाल पर एसईसीएल के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी शनिश चंद कुमार का कहना है कि लिंकेज के कोयले की डिमांड उद्योग विभाग की ओर से आती है और एसईसीएल संबंधित उद्योग को कोयला जारी कर देती है।लिंकेज के कोयले में इससे अधिक हमारी कोई भूमिका नहीं होती। उन्होंने बताया कि पिछले महीने 19 लाख टन की डिमांड आई थी। किसी महीने यह मात्रा कम या अधिक होती रहती हैं।

केंद्र सरकार ने लिंकेज का कोयला देना बंद करने का फैसला ले लिया तो उद्योगों को खुले बाजार के भाव से ऑक्शन में कोयला लेना पड़ेगा । देश में हजारों की संख्या में ऐसे उद्योग हैं जो कागजों में संचालित हो रहे हैं। इनकी भी जांच केंद्र सरकार करा रही है । आने वाले वित्तीय वर्ष में इस मामले में उद्योग मालिकों को बड़ा झटका लग सकता है। सूत्रों के मुताबिक कोल माफिया लिंकेज के कोयले को बाजार में ऊंचे भाव में बेचकर लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं । इसका बड़ा उदाहरण यह है कि कोरोना काल में एसईसीएल में कोयले का ऑक्शन नहीं हुआ फिर भी कोयले के खुले बाजार पर कोई असर नहीं पड़ा जबकि केवल पावर प्लांटों को ही कोयला दिया जा रहा था। इस दौरान बंद पड़े उद्योगों को लिंकेज का कोयला दिया गया। इससे पता चलता है लिंकेज के कोयले में किस तरह का खेल चलता रहा है। बाजार में लिंकेज के कोयले की कालाबाजारी होती रही। लिंकेज का कोयला दुगने रेट में बाजार में बिक रहा था ।

सूत्र बताते हैं कि उद्योग केवल 25% लिंकेज के कोयले का उपयोग करते हैं और 75% कोयला सीधे बाजार में बेचकर अवैध कमाई कर रहे हैं । केंद्र सरकार से लेकर कोल इंडिया तक को पता है कि लिंकेज के कोयले की कालाबाजारी हो रही है ,परंतु फैक्ट्री मालिकों से अधिकारियों की साठगांठ होने से अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। अब अगर केंद्र सरकार ने लिंकेज का कोयला देना बंद किया तो उद्योगों को एसईसीएल से खुली नीलामी में कोयला लेना पड़ेगा। इससे तय मानिए कि कागजों में चलने वाले उद्योगों में ताले लग जाएंगे। इसका एक असर यह भी होगा कि नीलामी में कोयले का भाव चढ़ जाएगा जिसका सीधा फायदा कोल इंडिया को होगा। कोयले के अवैध कारोबार पर भीअंकुश लग जाएगा। सरकार की योजना यही है।हालांकि लिंकेज का कोयला बंद करने से उन उद्योगों को भी महंगा कोयला खरीदना पड़ेगा जो ईमानदारी से लिंकेज का कोयला उपयोग में लाते हैं। ऐसे उद्योगों में तैयार होने वाले उत्पादों की लागत बढ़ जाएगी , जिससे उपभोक्ता भी प्रभावित होंगे। सरकार को उपभोक्ता हितों का अलग से ख्याल रखना होगा। इसके लिए वह उद्योगों को अलग से नकद सब्सिडी दे सकती है।

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