नई दिल्ली। One nation-one election: संसद के शीतकालीन सत्र के 17वें दिन, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ‘एक देश-एक चुनाव’ से जुड़े दो महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा के पटल पर रखे। इनमें से 129वें संविधान संशोधन बिल पेश करते हुए सरकार ने इसके कई फायदे गिनाए, जैसे चुनावी खर्च में कमी, प्रशासनिक क्षमता में सुधार और चुनावी प्रक्रिया को सुगम बनाना। हालांकि, इन विधेयकों का टीएमसी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने विरोध किया, जबकि तेलुगू देशम पार्टी (TDP), जेडीयू और वाईएसआर कांग्रेस ने विधेयक का समर्थन किया।
विपक्षी सांसदों ने किया विरोध
One nation-one election: टीएमसी के वरिष्ठ नेता कल्याण बनर्जी ने इस विधेयक पर तीखी आलोचना की और इसे “संविधान के खिलाफ” करार दिया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक “अल्ट्रा वायरस” (संविधान के दायरे से बाहर) है और यह राज्यों की स्वायत्तता पर हमला करता है। बनर्जी ने आरोप लगाया कि यह संशोधन सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा किया गया है, और यह राज्यों की विधानसभाओं के अधिकारों को कम करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा, हम इसे बदल देंगे, क्योंकि यह देश के संविधान की भावना के खिलाफ है। इसके अलावा, इंडियन मुस्लिम लीग के सांसद बशीर और शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के सांसद अनिल देसाई ने भी विधेयक का विरोध किया। अनिल देसाई ने इसे संघीय ढांचे पर हमला बताते हुए कहा कि यह विधेयक भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के खिलाफ है, क्योंकि यह एक संघीय राज्य के अधिकारों को सीमित करता है।
One nation-one election: कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने भी इस विधेयक पर असहमति जताई और इसे भारत के संघीय ढांचे के खिलाफ बताया। डीएमके के सांसद टीआर बालू ने कहा कि इस विधेयक को लाने से पहले सरकार के पास दो तिहाई बहुमत नहीं था, ऐसे में संविधान में संशोधन करने के लिए इसकी मंजूरी कैसे दी गई। उन्होंने इसे संविधान विरोधी बताते हुए सरकार से इसे वापस लेने की मांग की। समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने भी विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह विधेयक संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और तानाशाही लाने की कोशिश है। यादव ने कहा, हमने हाल ही में संविधान की कसमें खाई थीं और अब कुछ ही दिनों में यह विधेयक लाकर संघीय ढांचे को खत्म करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चुनावों की तारीखें बदलकर पूरे देश में चुनाव कराया जाना संविधान विरोधी हैं।
संविधान संशोधन से जुड़े प्रावधान
One nation-one election: 129वें संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद 82(A) जोड़ा जाएगा, जो लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने का आधार बनेगा। इसके अलावा, अनुच्छेद 83, 172, और 327 में संशोधन किया जाएगा, जो यह तय करेगा कि यदि किसी विधानसभा को भंग किया जाता है तो केवल बचा हुआ कार्यकाल ही पूरा करने के लिए चुनाव होंगे। यह कदम चुनावी खर्च और समय बचाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इन विधेयकों में द जम्मू एंड कश्मीर रीऑर्गनाइजेशन एक्ट-2019, द गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज एक्ट-1963, और द गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली-1991 में संशोधन करने का भी प्रस्ताव है।
प्रधानमंत्री मोदी रख सकते हैं पक्ष
One nation-one election: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्यसभा में इस मुद्दे पर अपना जवाब दे सकते हैं, जिससे विधेयक पर बहस को नई दिशा मिल सकती है। इससे पहले, लोकसभा में कांग्रेस पर संविधान के प्रावधानों के दुरुपयोग का आरोप लगाने के बाद उन्होंने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच बीते दिन तीखी बहस हुई, जो चर्चा में रही।
एक देश-एक चुनाव’ 1967 तक
One nation-one election: 1952 से 1967 तक, लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे। लेकिन 1968-69 में कई राज्य विधानसभाएं समय से पहले भंग हो गईं और 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई, जिसके कारण यह परंपरा टूट गई। अब सरकार इसे फिर से लागू करना चाहती है। रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने ‘एक देश-एक चुनाव’ के लिए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं, जिनमें सभी विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाने, सिंगल वोटर लिस्ट तैयार करने, और चुनाव आयोग को एडवांस में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों के लिए योजना बनाने का सुझाव दिया गया है।