•अजय गुप्ता
सूरजपुर। Panchayat elections: त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के पहले चरण में जिला पंचायत सदस्य पद के लिए हुए मतदान में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों की प्रभावशाली जीत ने स्थानीय राजनीति में बड़ी हलचल पैदा कर दी है। खासकर मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े के गृह जिले में भाजपा समर्थित सभी छह उम्मीदवारों की हार से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जमीनी स्तर पर पार्टी की पकड़ कमजोर हुई है और जनता का झुकाव कांग्रेस की ओर बढ़ रहा है। यह न सिर्फ पार्टी के लिए बड़ा झटका है, बल्कि सरकार के विकास कार्यों की दिशा और प्रभावशीलता पर सवाल खड़े करने वाला है। स्थानीय पार्टी नेताओं के लिए एक तरह से सबक भी है।
Panchayat elections: चार दिन पहले नगरपालिका चुनाव में हार से भाजपा उबर भी नहीं पाई थी कि पंचायत चुनाव में जिला पंचायत सदस्य पद के चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुकूल नहीं रहा। पहले चरण की सभी छह सीटों पर भाजपा समर्थित उम्मीदवार हार गए। भाजपा ने चुनाव में विकास कार्यों का कार्ड खेला, लेकिन नतीजों से साफ है कि यह कार्ड नहीं चल सका। माना जा रहा है सरकार की योजनाओं का असर ज़मीन पर नहीं दिखा,और जनता को नेताओं के चुनावी दौरे महज़ दिखावा लगे। पार्टी के भीतर आपसी असंतोष इतना बढ़ गया कि भाजपा के बागी ही असली चुनौती बन गए और उन्होंने भाजपा समर्थित प्रत्याशियों को शिकस्त देकर आंतरिक कमजोरियों को उजागर कर दिया।इसके अलावा टिकट वितरण में सही निर्णय न लेना भी हार का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।
Panchayat elections: पहले चरण के नतीजों में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों ने चार सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि भाजपा समर्थित उम्मीदवारों को एक भी सीट नहीं मिली। कांग्रेस की योगेश्वरी लक्ष्मण राजवाड़े ने तीन हजार से अधिक मतों से जीत दर्ज कर भाजपा को बड़ा झटका दिया। निर्दलीय कलेश्वरी लखन कुर्रे ने जीत हासिल की हांलाकि इन्हें कांग्रेस का ही माना जा रहा है, जबकि कांग्रेस के नरेंद्र यादव ने भाजपा को शिकस्त दी। भाजपा के बागी उम्मीदवार किरण केराम ने भाजपा समर्थित उम्मीदवार को कांटे की टक्कर में हराकर जीत दर्ज की,वहीं कांग्रेस के अखिलेश प्रताप सिंह ने रिकॉर्ड अंतर से जीत हासिल कर यह साबित कर दिया कि भाजपा का प्रभाव अब पहले जैसा नहीं रहा। भाजपा के ही पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष गिरीश गुप्ता,जिन्होंने बगावत कर चुनाव लड़ा था, भाजपा समर्थित उम्मीदवार को हराकर यह संदेश दे दिया कि पार्टी के अंदरूनी समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं।
Panchayat elections: पहले नगरपालिका चुनाव और अब पंचायत चुनाव में करारी हार से भाजपा को अपनी रणनीति पर गंभीर आत्ममंथन करने की जरूरत पड़ गई है। जनता अब केवल नारों और घोषणाओं से संतुष्ट नहीं होती, बल्कि वास्तविक विकास देखना चाहती है। स्थानीय नेतृत्व जनता तक अपनी योजनाओं को प्रभावी ढंग से पहुंचाने में नाकाम रहा, जिससे ग्रामीण इलाकों में पार्टी अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर सकी। हालांकि, यह चुनाव एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा सकता है, जिससे भाजपा को अपने संगठन और नीति-निर्धारण में बदलाव का अवसर मिला है। अभी द्वितीय और तृतीय चरण के चुनाव बाकी हैं, जहां पार्टी के पास अपनी स्थिति सुधारने का मौका होगा। यह वक्त भाजपा के लिए न सिर्फ रणनीति बदलने, बल्कि जमीनी स्तर पर मजबूती से जुड़ने का भी है, ताकि आगामी चरणों में संतुलन बनाया जा सके। दूसरी ओर कांग्रेस इस जीत से उत्साहित है और अगले चरणों में इसे बरकरार रखने पूरी ताकत झोंकने को तैयार है। अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा अपनी कमजोरियों को दूर कर वापसी करती है,या कांग्रेस जीत की अपनी लय पर बनी रहती है।