हाई कोर्ट के याचिका खारिज करने के फैसले को दी गई थी चुनौती
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने आज 16 दिसंबर को छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित परसा कोल् ब्लॉक के आदिवासी भू विस्थापितों की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली। हालांकि जस्टिस भूषण गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कोल् प्रोजेक्ट पर रोक लगाने के मांग अस्वीकार कर दी परन्तु साथ ही प्रकरण की सुनवाई शीघ्र करने की मांग को स्वीकार कर लिया। गौरतलब है की गत 11 मई को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इन याचिकाओं को अत्यंत देरी से दाखिल करने और मेरिट ना होने की बात कह कर ख़ारिज कर दिया था. हाई कोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
परसा कोल् ब्लॉक का भूमि अधिग्रहण 2017-18 में कोल् बेअरिंग एक्ट के तहत किया गया था। इसके विरोध में सरगुजा में मंगल साय और अन्य प्रभावित लोगो के द्वारा सप्तम्बर 2020 में यह कह कर याचिका दायर की गई थी कि उक्त खदान का हस्तांतरण राजस्थान राज्य विदूयत उत्पादन निगम ने अडानी की निजी कंपनी को कर दिया है जबकि कोल् बेअरिंग एक्ट से केवल केंद्र सरकार की सरकारी कंपनी के लिए ही जमीन अधिग्रहित हो सकती है। साथ ही नए भूमि अधिग्रहण के प्रावधान लागू ना करने से प्रभवितो को बड़ा नुक्सान हो रहा है।इसी तरह वन अधिकार कानून तथा पैसा अधिनियम की भी अवहेलना की गई है। ग्राम सभा के प्रस्ताव फ़र्ज़ी तरीके से बनाये गए है और हाथी प्रभावित क्षेत्र में खदान खोलना अनुचित है। इसके साथ ही अधिग्रहण प्रक्रिया में सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया है।
इस प्रकरण की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में गत 21 नवंबर को भी हुई थी । उस दिन कोर्ट ने कोल् बेअरिंग एक्ट और नए भू अधिग्रहण क़ानून के तहत अधिग्रहण से कैसे प्रभावितो को नुक्सान होता है पर अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की अनुमति दी थी। आज हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओ की और से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने ने बताया कि भू अधिग्रहण क़ानून की धारा 2 सी के तहत केवल भू स्वामी ही नहीं बल्कि प्रभावित क्षेत्र के समस्त नागरिक प्रभावित परिवार माने जाते है परन्तु कोल् बेअरिंग एक्ट में केवल भूमिधारी ही प्रभावित माना जाता है। इसके अलावा प्रभावित व्यक्ति की वन उत्पादों से होने वाली आय का अलग मुआवजा होता है तथा भूमिहीन और मज़दूर को भी मुआवजा मिलना चाहिए। याचिकर्ताओ की और से उपस्थित वरिष्ठ वकील संजय पारीख ने अडानी के साथ संयुक्त कंपनी का मुद्दा उठा कर कहा कि कोल् बेअरिंग एक्टके तहत यह अवैध है और नए भूमि अधिग्रहण कानून में अनुसूची 5 क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण अंतिम विकल्प के रूप में करने का नियम है। इन सभी प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है।
केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और संयुक्त उपक्रम की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिकाओं का विरोध किया. सुनवाई के पश्चात सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई की अनुमति प्रदान करते हुए उन्हें सुनवाई के लिए स्वीकार किया परन्तु प्रोजेक्ट पर रोक लगाने की मांग अस्वीकार करते हुए अंतिम सुनवाई जल्दी करने की मांग स्वीकार कर ली।