सक्सेना जी के दर्शन में पूरे ब्रह्मांड की चिंता
बिलासपुर । साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित राजेश्वर सक्सेना एकाग्र समारोह में साहित्यकार आलोक टंडन ने कहा कि द्वंद्वात्मक भौतिकवाद को समझने पर मनुष्य के सामने प्रकृति और इतिहास की अवधारणा स्पष्ट होने लगती है ।राजेश्वर सक्सेना ने वृहद पैमाने पर अध्ययन के आधार पर विज्ञान का दर्शन लिखा उनके दर्शन में पूरे ब्रह्मांड की चिंता झलकती है ।उनके चिंतन को लोग 50 वर्ष बाद समझ पाएंगे।
राजेश्वर सर ने वृहत पैमाने पर अध्ययन के आधार पर विज्ञान का दर्शन लिखा। विज्ञान का दर्शन पुस्तक में विज्ञान को समझने के लिए दृष्टि विकसित होती है कि द्वंद्वात्मक भौतिकवाद ही विज्ञान है। प्रकृति से लेकर इतिहास तक द्वंद का अध्ययन भौतिक शास्त्र गणित के माध्यम से किया गया है। सर का चिंतन है कि विज्ञान में ज्ञान के मूल्य हैं लेकिन वह ज्ञानात्मक नहीं है।
इसी सत्र में महेश वर्मा ने कहा कि विज्ञान का प्रयोग मनुष्य के विकास के लिए होना था लेकिन हम देख रहे हैं कि यह आंकड़ा जुटाने और तकनीकी विकसित करने में हो रहा है ।और उसमें मनुष्य गायब है। चीन किस रास्ते पर जा रहा है और क्यों सक्सेना जी के विचार सरोकार बदलाव के संदर्भ में समझ सकते हैं ।उन्होंने उत्तर आधुनिकता और द्वंद्व को जोड़ने की कोशिश की है उनका चिंतन कहता है कि व्यक्ति को भाषाई जाल में उलझाया जा रहा है। मुदित मिश्र ने कहा कि सर को 50 साल बाद ही समझा जाएगा उनका चिंतन बहुत आगे का है ।धीरेंद्र नाथ तिवारी ने कहा कि विज्ञान के अंतर्गत पूरी सृष्टि आती है और विज्ञान कहता है कि सब कुछ जाना जा सकता है मनुष्य ने ही इस धरती का सबसे ज्यादा विनाश किया है विज्ञान का उपयोग भी सबसे ज्यादा धरती के विनाश के लिए हो रहा है ।इसे समझने के लिए राजेश्वर सक्सेना को ज्यादा से ज्यादा पढ़ने की जरूरत है ।
वरिष्ठ साहित्यकार विजय बहादुर ने कहा कि सक्सेना जी ने जनता के पक्ष में लिखा है हम लोगों की जिम्मेदारी है कि उनके विचारों को लेकर काम करें। शोभित बाजपेई ने कहा सर के लेखन को 2 कालों में विभाजित किया जा सकता है। 1991 के पहले का लेखन और 1991 के बाद का लेखन 1991 के बाद के लेखन में जब पूंजीवाद चोला बदल रहा था तब सर के लेखन में एक बहुत वृहद दृष्टि आई उनका चिंतन है कि तकनीक ने विज्ञान को विघटित किया उनके चिंतन में बार-बार अन्न प्राण और मन उभर कर आता है वह कहते हैं उत्तर आधुनिक होने के लिए आधुनिक होना जरूरी नहीं सर चेतन समाज की चिंता करते हैं उनका मानना है कि विज्ञान का कोई सीधा सपाट राजमार्ग नहीं है जो ढालू रास्ते की थकान से नहीं डरते उनके लिए यह खुला है राजेश्वर सक्सेना का सरोकार क्या है मनुष्य गति में है और गति में नया क्या है यह सक्सेना जी का चिंतन है। आदित्य सोनी ने कहा कि सर की मुस्कुराहट एक ऊर्जा देती है उनकी मुस्कुराहट में एक बच्चों जैसी मासूमियत है ।अब छोटी-छोटी परचीयों में लिखते हैं। उनकी दृष्टि में पूरा ब्रह्मांड झलकता है आत्मीय सं स्मरण के सत्र में शीतेंद्र नाथ चौधरी रफीक खान सत्यभामा अवस्थी मंगला देवराज रामकुमार तिवारी हबीब खान और त्रिलोक जी ने अपनी यादें साझा की।
सर के सरोकार जमीनी- नथमल शर्मा
अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार नथमल शर्मा ने कहा राजेश्वर जी के सरोकार बिल्कुल जमीनी है और ऐसे जैसे बिल्कुल जमीन से जुड़े हुए उनके चिंतन में द्वंदात्मकता है और उत्तर आधुनिकता को उन्होंने बहुत बेहतर तरीके से स्पष्ट किया है ।इन सबसे परे उनका सिनेमा ई ज्ञान भी विराट है वह दिलीप कुमार की बखिया उधेड़ सकते हैं राज कपूर क्यों सर्वश्रेष्ठ हैं यह भी तर्कसंगत तरीके से बताते हैं।
प्राचेतस ,प्रखर समीक्षक हैं सर – डॉ प्रभा
जबलपुर से डॉ प्रभा ब्यौहार ने वीडियो कॉल के माध्यम से कहा कि प्राचेतक प्रखर समीक्षक है डॉक्टर राजेश्वर सक्सेना। वे आचार्य परंपरा के सबसे महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है ।गहन अध्येता राजेश्वर जी आचार्य नंददुलारे वाजपेई के शिष्य हैं उनका दूरगामी चिंतन और रचनात्मकता परिवेश को पहचान लेती है। मनुष्य अपने अस्तित्व को रूपांतरित करते हुए चलता है और जीवन की सार्थकताये मूल्य निष्ट होती हैं ।आज जरूरी है कि सक्सेना जी का साहित्य पूरा भारत ही नहीं वरन पूरा विश्व इसका अध्ययन करें।