नई दिल्ली। Supreme court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वकालत का पेशा कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के दायरे में नहीं आता है। उनके काम की सफलता कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है, जिन पर उनका कंट्रोल नहीं होता। इसलिए, उनकी सेवाओं या पैरवी में कमी का दावा नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि वकीलों का काम दूसरे प्रोफेशन से अलग होता है। उन्हें हाई लेवल एजुकेशन, स्किल और मेंटल लेबर की जरूरत होती है। इसलिए, उनके साथ व्यवसायियों की तरह व्यवहार नहीं किया जा सकता है। खराब काम को लेकर उन पर कंज्यूमर कोर्ट में केस नहीं चलाया जा सकता।

Supreme court: जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने कहा कि वकीलों पर काफी हद तक उनके क्लाइंट का सीधा कंट्रोल होता है। दोनों के बीच का कॉन्ट्रैक्ट पर्सनल सर्विस है। इसलिए, इसे कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत सर्विस की परिभाषा से बाहर रखा गया है।

NCDRC के फैसले को पलटा

Supreme court: सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन (NCDRC) के 2007 के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि वकीलों की सेवाएं कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 की धारा 2 (ओ) के तहत आती हैं। NCDRC के फैसले के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया, दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन और बार ऑफ इंडियन लॉयर्स और अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी।

डाक्टरों के मामले में पुनर्विचार की जरूरत

Supreme court: कोर्ट ने अपने फैसले में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम वीपी शांता मामले में अपने 1996 के फैसले का भी जिक्र किया। कोर्ट ने कहा कि चिकित्सा लापरवाही से जुड़े इस मामले में पुनर्विचार की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस के अपने फैसले में कहा था कि मेडिकल पेशे में काम करने वाले लोग कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के दायरे में आएंगे। इस एक्ट के तहत ‘सेवाओं’ की परिभाषा में हेल्थ केयर और मेडिकल सेक्टर को शामिल किया गया था। कोर्ट ने कहा- कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट का मूल उद्देश्य उपभोक्ताओं को गलत व्यापार प्रथाओं से बचाना था। ऐसा नहीं है कि कोर्ट इसमें सभी पेशेवरों को शामिल करना चाहती है। IMA बनाम शांता फैसले पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। चीफ जस्टिस से इस केस को बड़ी बेंच के पास भेजने का आग्रह किया जाना चाहिए।

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