राज्य की लोक-संस्कृति में श्रीराम विषय
पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

बिलासपुर । गुरू घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग एवं अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति में श्रीराम विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि डॉ संजय अलंग, वरिष्ठ साहित्यकार एवं संभागायुक्त बिलासपुर संभाग बिलासपुर रहे। बीज वक्तव्य इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाशमणि त्रिपाठी ने दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति एवं संगोष्ठी के संरक्षक प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल ने की।

अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो.चक्रवाल ने कहा कि राम का नाम ही भारत की अक्षय ऊर्जा का स्रोत है। हम सभी इस मामले में भाग्यशाली हैं कि जिस देश में राम जैसे महापुरुष ने जन्म लिया है उसे संस्कृति और सभ्यता के वाहक के रूप में हम सब आगे बढ़ रहे हैं। यह यह मेरा सौभाग्य है कि जिस धरती पर राम ने अपने इतने दिन वनवास के रूप में बिताए वह मेरी भी कर्मभूमि है। चूंकि यह धरती सचमुच में राम को भगवान राम बनाती है इसलिए छत्तीसगढ़ की पावन धरा पवित्र और पूजनीय है।
मुख्य अतिथि डॉ संजय अलंग, वरिष्ठ साहित्यकार एवं संभागायुक्त बिलासपुर ने कहा कि राम पूरे भारत में आराध्य हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के ननिहाल के रूप में प्रसिद्ध ,यह धरती आज भी उस परंपरा का निर्वहन करती हुई अपने भांजे को राम रूप में ही देखती है। राम के संघर्ष के दिनों का साक्षी छत्तीसगढ़ रहा है।
प्रो. त्रिपाठी, कुलपति, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय ने बीज वक्तव्य में कहा कि राम के रामत्व में वन गमन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है। भगवान राम के मर्म को वनवासी ही जानते थे। चित्रकूट से आम्रकूट और वहां से पंचवटी तक की कथा भगवान राम को रामत्व की प्राप्ति कराती है। प्रो. त्रिपाठी ने केवट और शबरी की कथा का सुंदर ढंग से चित्रण किया और यह बताया कि श्रीराम चेतना के मूल हैं तथा छत्तीसगढ़ की संस्कृति स्वरूप घर-घर में विराजमान हैं।
इससे पूर्व अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर मां सरस्वती एवं बाबा गुरू घासीदास जी की प्रतिमा पर पुष्पअर्पित किया गया। इस दौरान तरंग बैंड ने सरस्वती वंदना व कुलगीत की मोहक प्रस्तुति दी। तत्पश्चात नन्हें पौधे से मंचस्थ अतिथियों का स्वागत किया गया। स्वागत उद्बोधन कला विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. ब्रजेश तिवारी ने दिया। संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. गौरी त्रिपाठी ने किया।
मंचस्थ अतिथियों का छत्तीसगढ़ी गमछा, श्रीफल एवं स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मान किया गया। इस अवसर पर संगोष्ठी की स्मारिका का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। धन्यवाद ज्ञापन कला विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. ब्रजेश तिवारी ने एवं संचालन मुरली मनोहर सिंह, सहायक प्राध्यापक हिंदी विभाग ने किया। कार्यक्रम में विभिन्न विद्यापीठों के अधिष्ठातागण, विभागाध्यक्षगण, शिक्षकगण, अधिकारीगण, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित थे ।

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