नाटक भरथरी ने वेदना के करुण स्वर और संकल्प के प्रखर भाव को मंच पर सजीव किया
बिलासपुर । कला अकादमी छत्तीसगढ़ द्वारा दो दिवसीय नाट्य उत्सव भरथरी वैराग्य की गाथा नाटक से संपन्न हुआ। रंगकर्मी निर्देशक भूपेंद्र साहू गरियाबंद के निर्देशन में भरथरी नाटक ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया।

कार्यक्रम का प्रारंभ कला अकादमी के अध्यक्ष योगेंद्र त्रिपाठी ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि सभी का स्वागत और आभार ज्ञापित किया।श्रीकांत वर्मा पीठ के अध्यक्ष राम कुमार तिवारी ने कलाकारों का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया।संस्था ने सुरुजबाई खांडे को श्रद्धांजलि दी।कार्यक्रम का संचालन सुनील चिपड़े, सुमित शर्मा,श्री कुमार ने किया।

कथा बड़े ग्रामीण जनजीवन में एक बुजुर्ग द्वारा युवा पीढी को भरथरी की कथा कहने से शुरू होती है।दो गायकों द्वारा करुण गीत के माध्यम से कथा आगे बढ़ती है।सुंदर संगीत गायन और अभिनय से कलाकारों ने भावविभोर कर दिया।संत द्वारा महारानी की निराशा के बारे में जान उसके दुख को दूर करने का आश्वाशन देते है।पूरी कथा बड़े रोचक ढंग से चलती है।रानी की गोद भरने का उत्सव मनाया जाता है।फिर भरथरी वैराग्य के कथा का आरंभ होता है।


भूपेन्द्र साहू -निर्देशक
रंग सरोवर”भरारी” वैराग्य की गाथा ने बताया कि युग आते हैं, युग जाते हैं, पर वे अपने पीछे अपनी जाते हैं इन्ही निशानियों में होते हैं, लोक साहित्य/लोक गीत और लोक गाथाएं, जो जन मानस में रच बस जाते हैं, और सदियों तक जीवन्त बने रहते हैं।

हमारा छत्तीसगढ़ प्रदेश, देश की मुख्य धारा के साथ जुड़ कर इतिहास के प्रत्येक कालखण्ड में, स्वयं के साक्षीत्व को दर्ज कराते रहा है, यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के जन जीवन में सरस लोकगीत, मनमोहक लोक नृत्य और हैं समृध्द लोक गाथा । किंवदन्तियों, दंत कथाओं और लोक कल्पनाओं के सतत् प्रवाह के इतर भी कुछ लोक गाथा ऐसे हैं, जो इतिहास के साक्षी रहे हैं।

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरातल पर एक ऐसी ही समृध्द लोक गाथा है “भरथरी” जिसमें एक ओर सिसकते दाम्पत्य की विरह वेदना के करुण स्वर हैं, तो दूसरी ओर है, या तपस्या और संकल्पित वैराग्य का प्रसार भाव भी । लोक गाथा “भरथरी के अन्य राज्यों में भी अपने पृथक स्वरूपों के साथ विद्यमान है। हमारी प्रस्तुति “भरारी” वैराग्य की गाथा, छत्तीसगढ़ में प्रचलित व मान्य तथ्यों के अध्ययन पश्चात हमारा अपना दृष्टिकोण है। चूंकि छतीसगढ़ में भरथरी गायन शैली में प्रचलित है, रंग सरोवर संस्था, इस भरथरी गायन शैली को पहली बार मंच पर नाटक शैली में प्रस्तुत किया है।
निर्देशक के बताया कि मंच पर राजा भरथरी मिथुन खोटे
रानी फुलवा (भरथरी की माँ) भावना वाघमारे
भगवान / गोरखनाथ चन्द्रहास बघेल रानी सामदेई (भरथरी की पत्नी) योगिता मढ़रिया रानी रूपदेई (भरथरी की साली) जागेश्वरी मेश्राम / नीलम साहू कैना
जागेश्वरी मेश्राम चंपा चेरी तनु / नीलम साहू
काला मिरगा / सेउक दीपक कुमार ध्रुव मिरगिन
तनु, निधि, नीलम, योगिता, सिन्धु, जागेश्वर कथावाचक (बबा)
त्रेता चन्द्राकर (नाती) – उत्तम साहू गायन स्वर
राजेन्द्र साहू, गंगा प्रसाद साहू, योगिता मरिया, सिन्धु सोवाद्य वृन्द
भारत बघेल, सौरभ साहू, शिवम सेन, चन्द्रभूषण साहू
गीलेश पटेलमंच के पीछे मंच सज्जा
उत्तम साहू, दीपक ध्रुव, चन्द्राहास बघेलवेशभूषा एवं हस्त सामग्री
भावना वाघमारे, दीपक ध्रुवध्वनि प्रभावचेतन साहू प्रकाश प्रभाव
भूपेन्द्र साहू / लव कुमार साहू प्रस्तुति व्यवस्थापकसंतोष देशमुख / लव कुमार साहू।कार्यक्रम में बडी संख्या में साहित्यकार साहित्य प्रेमियों पत्रकारों समाजसेवी छात्रों नवांकुरों और शहरवासियों ने हिस्सा लिया।

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