fourthline desk भारत का हर शख्स अटल बिहारी वाजपेई को सिर्फ नेता के रूप में ही नहीं जानता। अटल लोगों के दिलों में एक लेखक के रूप में भी बसते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी का साहित्य में झुकाव भर नहीं था वो खुद लिखते भी थे। उनकी आवाज में कविताओं में जान आ जाती थी। जब वह सभाओं व संसद में अपनी कविताएं पढ़ते थे तो लोग घंटों तक मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे। उन्होंने हिंदी को विश्वस्तर पर मान दिलाने के लिए काफी प्रयास किए। वह 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री थे। संयुक्त राष्ट्र संघ में उनके द्वारा दिया गया हिंदी में भाषण उस समय काफी लोकप्रिय हुआ था। उनके द्वारा हिंदी के चुने हुए शब्दों का ही असर था कि यूएन के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर वाजपेयी के लिए तालियां बजाईं थीं।
उनकी एक कविता की कुछ पंक्तियां –
कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

