बिलासपुर। Violence against Hindus in Bangladesh: बांग्लादेश में जारी हिंसा में शिकार हो रहे हिन्दू अल्पसंख्यकों को उनकी सुरक्षा तथा धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सर्वो बंगों समाज आंदोलन करने जा रहा है। शनिवार को प्रेस क्लब में पत्रकारों से चर्चा करते हुए एस. के.मित्रा, पल्लवधर, पार्थो, बी सी गोलदार और असित बरन दास ने बताया कि 22 अगस्त 2024 को एक विशाल आंदोलन और सभा आयोजित कर प्रधानमंत्री को जिलाधीश के माध्यम से एक ज्ञापन प्रेषित किया गया था ताकि बांग्लादेश की यूनूस सरकार को आधिकारिक रूप से स्पष्ट विरोध भारत सरकार द्वारा दर्ज किया जा सके।

Violence against Hindus in Bangladesh:  बांग्लादेश के धार्मिक उन्मादों ने नई सरकार के संरक्षण में हिंदुओं पर अत्याचार कम करने की बजाय और अधिक बढ़ा दिया है। वहाँ के अल्पसंख्यक हिन्दू संप्रदाय की जान माल की हानी तो हो ही रही है, साथ ही उनके लिए अब महिलाओं के अस्मिता की रक्षा करना भी कठिन होता जा रहा है। विभिन्न समाचार पत्र और टी वी चैनल के माध्यम से यह देखने, पढ़ने को मिल रहा है कि बांग्ला देश के एक विशेष वर्ग द्वारा उन्मादी भाषणों के जरिए आम जनता को उत्प्रेरित किया जा रहा है ताकि वर्षों से रह रहे हिंदुओं को वहाँ से उत्पात करने के लिए हिंसा, आगजनी, लूटमार मंदिर तथा धार्मिक स्थानों को नुकसान पहुंचाने की घटनाओं को अंजाम देती रहे। अब हिंदुओं के विरुद्ध देश द्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल भी भेजा जा रहा है। जिसका एक उदाहरण हाल ही में स्वामी चिन्मयानन्द दास को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी की गई और उन्हें बेल देने से इनकार कर दिया गया। 

Violence against Hindus in Bangladesh:  इस्कॉन, जो कि एक धार्मिक संगठन है, ने उन पर हो रहे जुल्म का विरोध किया है पर सभी से शांतिपूर्ण आन्दोलन जारी रखने का अनुरोध किया है जिसे यूनुस सरकार द्वारा कुचलने का पुरजोर प्रयास किया जा रहा है। प्रश्न यह उठता है कि वहाँ के वर्तमान राष्ट्रपति मोह. यूनिस स्वयं अर्थनीति के ज्ञाता और नोबेल विजेता है, फिर भी देश के प्रसाशनिक मामलों में उनकी विराट ब्यक्तित्व का कोई छाप नहीं पड़ रहा है। वे महज सेना के हाथ के कठपुतले नजर आ रहे है।

Violence against Hindus in Bangladesh: भारत की सरजमीं में रहते हुये बांग्लादेश कि स्थिति का पूर्ण रूप से आकलन करना शायद संभव न हो, परंतु मीडिया की शक्तिशाली भूमिका हमे लगातार वहाँ हिन्दू तथा अन्य अल्पसंख्यकों पर हो रहे अमानवीय व्यवहार और अत्याचार के चित्रण से अवगत करा रही है। हम में से कई ऐसे है जिनके रिश्तेदार, भाई बंधु आज भी बांग्लादेश के विभिन्न स्थानों में नागरिक की हैसियत से रहते आ रहे हैं। उनसे यह पता चलता है कि सिर्फ हिन्दू होने के कारण उन्हें किस तरह एक डर के माहोल में सांविधानिक अधिकारों से वंचित होकर अनिश्चितता भरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

Violence against Hindus in Bangladesh: 1971 में तत्कालीन इंदिरा सरकार ने जब बांग्लादेश में हो रहे अत्याचार का विरोध किया और पाकिस्तानी सैनिकों को सबक सिखाया था तब उस दृष्टिकोण में संप्रभुता विस्तार जैसी कोई बात नही थी बल्कि वह एक मानवीय संवेदना से जुड़ी राष्ट्रीय सोच थी जिसमे अत्याचारित पूर्वी पाकिस्तानियों (अब बांग्लादेशि) के ऊपर पश्चिम पकिस्तानी सेना द्वारा किए जा रहे हिंसा और वीभत्स अत्याचार रोककर उन्हें अपनी अस्मिता, अपना एक राष्ट्र सौपने जैसी एक महान चिंताधारा शामिल थी। हम भूल नहीं सकतें उन दिनों की त्रासदी भरे क्षण और साथ ही हमारे जवानों की बलिदान गाधाएं। पर आज वही बांग्लादेश के लोग भारत विरोधी लहर उत्पन्न करते हुये अपने हिन्दू साथियों पर जुल्म कर रहे है, उन्हें देश छोड़कर जाने के लिए वातावरण बना रहे है। राष्ट्रनितियों की विश्लेषण करना आम जनता का उद्देश्य नहीं, बल्कि आज लाखों निपीड़ित मनुष्यों को उनकी सुरक्षा और आत्मसम्मान से जीने का रास्ता सब मिलकर ढूंढना आवश्यक हो गया है।

Violence against Hindus in Bangladesh: सर्बो बान्गो समाज के मंच से प्रबुद्ध वर्ग ने शक्तिशाली आवाज में उन समस्त अन्यायों का विरोध करते हुये एक प्रस्ताव पारित किया है और केंद्र सरकार को अनुरोध किया है कि सरकार द्वारा उचित कदम उठाकर बांग्लादेश में हो रहे हिन्दू तथा अन्य अल्पसंख्यकों पर हिंसा और अत्याचार कि घटनाओं की भत्सना करें और उन अमानवीय घटनाओं की पुनरावृत्ति पर तत्काल रोक लगाने हेतु प्रभावी कदम उठायें। वर्तमान छत्तीसगढ़ शासन से भी अनुरोध किया जा रहा है कि उनके द्वारा उपरोक्त विषय पर एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र शासन को उचित कार्यवाही हेतु प्रेषित करने की अनुसंशा करे।

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