जीवन के हर क्षेत्र की पहली
बिलासपुर । पं सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय में भारतीय भाषाओं में शोध एवं अकादमिक-लेखन विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
समापन सत्र के अध्यक्ष विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बंश गोपाल सिंह ने कहा कि जो व्यक्ति स्थानीय, भाषा और संस्कृति को बिना किसी अवरोध के प्रस्तुत करता है, तो वह सबसे मौलिक कार्य करता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया किया कोई भी व्यक्ति किसी भी भाषा, संस्कृति को सहजने का कार्य कर रहा है, तो वह एक तरह से समाज को भी सहेजने, समाज का बेहतर निर्माण करने का कार्य भी कर रहा होता है।
कार्यशाला के तीसरे दिन प्रथम तकनीकी सत्र नई शिक्षानीति 2020 और भारतीय भाषाओं के विकास का मूलभाव विषय पर डॉ. शशांक शर्मा, पूर्व निदेशक, छत्तीसगढ़ हिंदी ग्रंथ अकादमी, रायपुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जिन छात्रों में भाषा ज्ञान, अध्ययन, मनन, अभिव्यक्ति एवं नेतृत्व क्षमता जैसे गुणों का समावेश है, वह किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। उन्होंने नई शिक्षा नीति के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति 2020, 102 पेज की है जिसमें 14 पेज अर्थात 13 प्रतिशत भाषा पर है। इससे समझा जा सकता है कि नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं पर इतना अधिक जोर क्यों दिया गया है। इसका मूल कारण है भाषा के प्रति लोगों को बताना कि हम जिस भी विषय क्षेत्र में कार्य करें उसकी पहली कड़ी भाषा है, भाषा मनुष्य की सार्थकता को सि़द्ध करता है, उन्होंने आगे हिंदी के विकास को रेखांकित करते हुए बताया कि भारतेन्दु हरिशचंद जी ने भी भाषायी समातना पर बल दिया था। उनके अनुसार यदि हमने अपनी आने वाली पीढ़ी को भाषायी शिक्षा नहीं दी तो फिर यह हमारी सबसे बड़ी कमजोरी होगी। इससे देश का सर्वांगीण विकास बाधित होगा, जिससे सामाजिक विकास में भी प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि छठवीं से आठवीं तक के विद्यार्थियों को भाषा का महत्व बताना आज बहुत महत्वपूर्ण है, यह आवश्यक भी है। हम यदि यह सोचे कि इन बच्चों को भाषा ज्ञान के बिना उनका विकास कर लेंगे तो मैं समझता हूँ कि यह सही नहीं होगा, मेरा मानना तो यह है कि उन्हें अपनी मातृभाषा, हिंदी तथा संस्कृत से अवगत कराना हमारा प्रथम उद्देश्य होना चाहिए।
अंतिम तकनीकी सत्र मे ंडॉ. विनय कुमार पाठक पूर्व अध्यक्ष छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग, रायपुर ने भारतीय भाषाओं में शोध और अकादमिक लेखन में भारतीय भाषाओं में अनुसंधान का विस्तार विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा खोज वह साधन है जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनी द्वारा की गई साधना शोध का ही एक रूप थी। आज हम खोजे हुए को खोजते है, वहीं अनुसंधान या रिसर्च है, उनके अनुसार भाषा में संस्कृत मूलभाव है तथा संस्कृति उसी से उत्पन्न हुई हैं। भारतीय भाषा और आंचलिक भाषा सदैव महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि गुवाहाटी अर्थात् सुपारी के बाजार, अगरतला अर्थात अगर के सर्वाधिक वृक्ष से उत्पन्न शब्द हैं, ऐसे अनेक शब्द हैं जो हमारी भूगोल, पर्यावरण तथा समाज से संबंध स्थापित करते हैं, इनका मूल भाव स्थानीयता से जुड़ा हुआ है, इसलिए शब्दों कि व्यत्पति में भी यही मुख्य हैं। उन्होंने कहा नई भारतीय पीढ़ी को समावेशी भाषा पर शोध करने की विशेष रूप से आवश्यकता है, जिससे भारतीय भाषाओं में शोध को और अधिक समोन्नत बनाया जा सके।
कार्यशाला के संयोजक डॉ. जयपाल सिंह प्रजापति ने संक्षिप्त प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर प्रतिभागी डॉ. नंदनी तिवारी ने कार्यशाला के विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में भाग लेने के बाद ऐसा लग रहा है कि ‘आइए हम सब फिर से पहले की ओर लौट चले’, प्रतिभागी श्री प्रताप कुमार साहू ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कार्यशाला में कई बिन्दुओं पर सारगर्भित व्याख्यान, चर्चा से ज्ञान में वृद्धि हुई साथ ही कार्यशाला के रोमांचक और अविस्मणीय सत्रों के लिए संयोजक, सह-संयोजक का आभार व्यक्त किया। उन्होंने आगे कहा कि आपने ऐसे विद्वानों का चुनाव किया जिन्होंने भारतीय भाषाओं में शोध और अनुसंधान-लेखन की बारीक कड़ियों को बताया, इसके लिए आप लोगों का धन्यवाद। इस तीन दिवसीय राष्ट्रीयकार्यशाला कि सह संहयोजक डॉ. अनिता सिंह रही। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अधिकारी, प्राध्यापक, प्रतिभागी मौजूद थे।