बिलासपुर। Right to education : छत्तीसगढ़ के कई प्रमुख निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को RTE (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम के तहत प्रवेश न मिलने के मामले में हाईकोर्ट ने अंतिम सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
Right to education : भिलाई के समाजसेवी सीवी भगवंत राव ने इस मामले में एक जनहित याचिकाअधिवक्ता देवर्षि सिंह के माध्यम से हाईकोर्ट में दायर की थी। याचिका में कहा गया कि आरटीई अधिनियम के तहत निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित हैं। यदि एक किलोमीटर के दायरे में रहने वाले बच्चों को प्रवेश नहीं मिलता है, तो उन्हें 3 किलोमीटर या उससे अधिक दूरी के स्कूलों में दाखिला मिलना चाहिए।
Right to education : मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ में हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि प्रदेश में आरटीई के तहत 59 हजार सीटों के लिए करीब 1 लाख 22 हजार आवेदन आए थे। सिर्फ रायपुर जिले में 5 हजार सीटों के लिए 19 हजार आवेदन मिले थे। प्रदेश के कई नामचीन स्कूलों में केवल 3 प्रतिशत बच्चों को ही प्रवेश दिया जा रहा है। वहीं सरकार के नोडल अधिकारी इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।
Right to education : अंतिम सुनवाई में सरकार ने दलील दी कि आरटीई के तहत प्रवेश देना सरकार की नीतिगत प्रक्रिया है और यह तय करना सरकार का अधिकार है कि किन स्कूलों में इन बच्चों को दाखिला दिया जाए। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि राज्य में 2007 में बीपीएल सूची जारी हुई थी, जबकि 2009 में आरटीई लागू हुआ। इसके तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रवेश मिलना चाहिए, लेकिन अब 2025 , 2020 में जन्मे बच्चों को इस दायरे से बाहर किया जा रहा है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

