आश्वसन पूरा नहीं होने पर बड़े आंदोलन की चेतावनी
कोरबा। हाईकोर्ट में कूलिंग टावर प्रभावितों के पुनर्वास के लिए कदम उठाने का हलफनामा देकर भुला बैठी भारत एल्यूमीनियम कंपनी (बालको) को तीन दिनों की आर्थिक नाकेबंदी ने सब कुछ याद दिला दी। प्रभावितों की इस नाकेबंदी के कारण सड़कों पर गाड़ियों की लंबी कतारें लग गईं। स्थानीय प्रशासन के सामने बड़ी मुश्किल पैदा हो गई । आखिरकार बालको को सामने आना पड़ा । थाने में हुई त्रिपक्षीय वार्ता में बालको ने वादा किया कि वह पुनर्वास के लिए तत्काल कदम उठाएगी , प्रभावितों ने नाकेबंदी वापस ले ली।

कूलिंग टावर प्रभावित पिछले तीन दिनों से आंदोलन कर रहे थे। पुनर्वास शर्तों के मुताबिक उन्हें अब तक सुविधाओं का लाभ मिल जाना चाहिए था। वे पिछले 13 साल से इसकी लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की थी। हाईकोर्ट के निर्देश पर बालको ने हलफनामा दिया था कि वह सभी प्रभावितों को पुनर्वास योजना के तहत सभी सुविधाएं उपलब्ध कराएगी, लेकिन उसने प्रभावितों से वादा पूरा नहीं किया। इस बीच प्रभावित लोग शासन – प्रशासन स्तर पर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। जब उन्हें लगा कि किसी स्तर पर उनके अधिकारों के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है तो उन्होंने आर्थिक नाकेबंदी जैसा कदम उठाया।
प्रभावितों ने पुनर्वास सुविधा के लिए हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दोबारा दायर की है , जिस पर संबद्ध पक्षों को नोटिस जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि कूलिंग टावर की स्थापना की मंजूरी जिन शर्तों के अधीन दी गई थी, बालको ने एक का भी पालन नहीं किया। कुछ दिनों पूर्व शांतिनगर पुनर्वास समिति ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को ज्ञापन प्रेषित कर पूरे मामले की जांच के लिए सचिव स्तरीय कमेटी के गठन की मांग भी की थी। जिला प्रशासन को भी ज्ञपन दिया था और कहा था कि कोयले और राखड़ से फैल रहे प्रदूषण के कारण लोगों का जीवन संकट में पड़ गया है। लोग श्वांस संबंधी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। कंपनी सड़कों और लोगों के घरों के आसपास राखड़ के ढेर लगा दे रही है। कोयले के असुरक्षित परिवहन की वजह से डस्ट की परत घरों में जम जाती है। बाहर निकलना ही नहीं, घरों में रहना मुश्किल हो गया है। पुनर्वास ही एक उपाय रह गया है।

शांतिनगर समिति ने पर्यावरण संरक्षण मंडल के स्थानीय अधिकारी को भी इस संबंध में एक ज्ञापन देकर आवश्यक कार्रवाई का अनुरोध किया है। समिति के अध्यक्ष आर ए नारायण ने बताया कि कंपनी को कूलिंग टावर की अनुमति जिन शर्तों के अधीन मिली है ,उनके अनुसार प्रभावितों के पुनर्वास के साथ ग्रीन बेल्ट का विकास भी करना था, लेकिन कंपनी ने ऐसा कुछ नहीं किया। करीब तीन सौ परिवार इससे प्रभावित हुए हैं। इनमें से कुछ को आधा- अधूरा मुआवजा देकर कंपनी ने चुप कराने की कोशिश की। अब स्थिति बहुत बिगड़ गई है तो लोगों को आर्थिक नाकेबंदी जैसा कदम उठाना पड़ा है। कंपनी ने एक बार फिर वादा तो किया है पर यह जल्द पूरा होता हुआ नहीं दिखा तो हम फिर कोई बड़ा आंदोलन करेंगे। हमें उन जनप्रतिनिधियों से भी कोई उम्मीद नहीं है , जो कंपनी से अपने निजी हित के कारण हमारा साथ देने से पीछे हटते रहे हैं। हमने अपनी लड़ाई खुद लड़ने की ठानी है।

