बिलासपुर। अधिवक्ता विनय दुबे द्वारा हाई कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका जिसमें बिलासपुर एवं रायपुर स्मार्ट सिटी कंपनियों के द्वारा नगर निगम और निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के अधिकार को हड़पने को चुनौती दी गई है, की आज हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस संजय अग्रवाल की खण्डपीठ में याचिकाकर्ता की की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने इन कंपनियों के द्वारा अरबो रूपये के कार्य बिना किसी जवाब देही के कराये जाने का मुद्दा उठाया और इसे संविधान के 74वें संशोधन और नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 के प्रावधानों का खुला उल्लंघन बताया।
गौरतलब है कि पूर्व में हाई कोर्ट के द्वारा इन कंपनियों को विभिन्न कार्यो जिनकी लागत सैकड़ों करोड़ रूपये से अधिक थी, इस आधार पर करने की अनुमति दी गई थी कि जनहित में इन विकास कार्यो का किया जाना जरूरी है। और अनुमति न मिलने पर यह राशि लेप्स हो जायेगी। आज इन कार्यो एवं पहले भी किये गये कार्य का कोई उचित एवं स्वतंत्र आॅडिट न होने का मुद्दा उठाया गया।
इस अवसर पर हाई कोर्ट ने प्रतिवादियों के अधिवक्ताओं से अब तक इन स्मार्ट सिटी कंपनियों के संबंध में हुये किसी भी आॅडिट की जानकारी और ब्यौरा मांगा। अधिवक्ता सुमेश बजाज के साथ उपस्थित अधिवक्ता सलोनी वर्मा ने हाई कोर्ट को बताया की इस संबंध में संभवतः कोई आॅडिट हो चुका है जिसके लिये पिछले महीने टीम दिल्ली से आई थी। इस पर हाई कोर्ट ने अपने आदेश में समस्त ब्यौरा रायपुर और बिलासपुर दोनों ही स्मार्ट सिटी कंपनियों को अगली सुनवाई के पहले दाखिल करने के निर्देश दिये और अगली सुनवाई 12 दिसम्बर को नियम की गई है। इस दिन सीएजी आॅडिट की मांग वाले आवेदन पर विचार किया जायेगा।

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