बिलासपुर । रामचरितमानस के रचयिता और विश्व में भारतीय संस्कृति को स्थापित करने वाले गोस्वामी तुलसीदास की जन्म स्थली गोंडा ,उत्तर प्रदेश में पंचम विश्व तुलसी सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें विश्व भर से आए विभिन्न साहित्यकारों ने तुलसी के साहित्य पर गंभीर चर्चा की और इसी उपलक्ष में आचार्य अरुण दिवाकर नाथ बाजपेई ,कुलपति ,अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय बिलासपुर छत्तीसगढ़ को उनके साहित्यिक योगदान के लिए विश्व तुलसी सम्मान प्रदान किया गया ।

यह सम्मान उन्हें 19 अप्रैल 2023 को उनकी अनुपस्थिति में प्रदान किया गया । स्वास्थ्य खराब होने के कारण व्यक्तिगत रूप से सम्मान लेने वह नहीं जा पाए ।
आचार्य बाजपेई भारतवर्ष के ख्याति लब्ध कवि,रचना धर्मी है ।उनके मुझे दो ग्रंथ अरुण सतसई (दोहा संग्रह),मैं तुम्हारे साथ भी हूं मैं तुम्हारे पास भी हूं (गीत और गजल संग्रह )प्रकाशित हो चुके हैं।
श्री वाजपेई तुलसी एक महान कवि ,समाज सुधारक,दार्शनिक, धारा के विपरीत चलने वाले और भविष्य दृष्टा मानते हैं । उनका कहना है कि तुलसी भारतीय संस्कृति के वैश्विक राजदूत हैं । आज विश्व में जो भारतीय संस्कृति की छवि दिखाई पड़ती है उसमें तुलसी के रामचरितमानस का विशेष योगदान है । उनका यह भी मानना है कि तुलसी ने ही राम को राम ,भरत को भरत ,लक्ष्मण को लक्ष्मण बनाया। उन्होंने ही सीता के आदर्श को जनमानस मैं प्रस्तुत किया है । उनकी ग्राम्य गिरा समस्त देशज भाषाओं के लिए मॉडल बनी है। आचार्य बाजपेई ने लगभग अरुण सतसई में 20 दोहे तुलसी को समर्पित किए है और एक दोहे में उन्होंने लिखा है
“जिसने सदियों पूर्व ही मुझको किया प्रणाम
उस तुलसी की चाकरी में मैं सदा गुलाम।।:
तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है कि जो कवि हो चुके हैं और जो होने वाले हैं ,तुलसी उन सभी को प्रणाम करते हैं ।इसीलिए प्रति प्रणाम स्वरूप आचार्य वाजपेई ने तुलसीदास जी को यह दोहा समर्पित किया है ।
आचार्य बाजपेई ने इस सम्मान के लिए समिति के समस्त सदस्यों विशेषकर अन्तरराष्ट्रीय संस्थापक स्वामी भागवताचार्य और राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर शुक्ला त्रिभुवन नाथ को धन्यवाद दिया है।

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