बिलासपुर । स्वच्छता एक बहुआयामी विषय है ।इसे केवल समाजशास्त्र तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता है। इसमें अर्थशास्त्र भी है,राजनीति शास्त्र भी है,दर्शन भी, विज्ञान और तकनीकी भी ,अंतरराष्ट्रीय संबंध ,कानून और व्यवस्था भी,व्यापार औऱ प्रबंधन भी है इसलिए इसे किसी एक विषय में बांधना कठिन होगा ।
ये विचार अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य अरुण दिवाकर नाथ बाजपेई ने आज नई दिल्ली के विवेकानंद इंटरनेशनल सेंटर में सुलभ इंटरनेशनल द्वारा आयोजित सोशियोलॉजी आफ सैनिटेशन विषय पर आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद में प्रकट किए । उन्होंने अपने उद्बोधन में आगे कहा कि पद्म विभूषण श्री बिंदेश्वर पाठक जी ने एक अभियान की तरह स्वच्छता का सार्वजनकीकरण किया है औऱ संस्थागत उपयोग किया है ।उन्होंने समाज में व्याप्त अस्पृश्यता जैसी कुरीति को भी समूल नष्ट करने का बीड़ा उठाया है। इसलिए किसी ऋषि से उनका महत्व कम नहीं है।
आचार्य वाजपेई ने आगे कहा कि आंतरिक और बाह्य
दोनों प्रकार की स्वच्छताओं की आवश्यकता होती है। बाहर की शुद्धता से कहीं अधिक मन और मनोविज्ञान की शुद्धता की आवश्यकता होती है, जिसके गुण सामाजिक समरसता व स्थाई विकास में परिलक्षित होते हैं। भाषा के उपयोग को लेकर भी उन्होंने चिंता प्रकट की और कहा कि स्वच्छता के अभियान में देशज भाषाओं का भी अधिकाधिक उपयोग होना चाहिए ।
आधुनिक विज्ञान के युग में जिस प्रकार से तकनीकी का विस्तार हो रहा है, स्वच्छता के अभियान में आधुनिक तकनीकी का भी उपयोग होना चाहिए। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर स्वच्छता से जुड़े हुए विषयों का अध्ययन औऱ अनुसंधान करने से भी आने वाली पीढ़ी को बहुत लाभ प्राप्त होगा।
ज्ञातव्य हो कि शुभारम्भ सत्र मू पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ,पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर ,सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने भी अपने विचार प्रकट किए ।
भारतवर्ष के लगभग 25 विश्वविद्यालयों के कुलपति और समाजशास्त्र से जुड़े हुए शताधिक आचार्य परिसंवाद में 3 दिनों तक मंथन करेंगे।

