अरपा पर जितना कवरेज यहां है
इतना तो गंगा पर भी नहीं
बिलासपुर (Fourthline )। नदियों को बचाना है तो नदी आधारित कृषि प्रणाली को फिर से विकसित करना पड़ेगा ।आने वाले समय में लोग स्वच्छ जल के लिए तरस जाएंगे, स्थितियां अभी से संकेत देने लगी हैं । प्रख्यात नदीविद एवं फिजी के पूर्व सांस्कृतिक राजदूत डॉ.. ओमप्रकाश भारती ने आज प्रेस क्लब के पहुना कार्यक्रम में कहा कि यहां बिलासपुर में जितना कवरेज अरपा को मिलता है उतना तो कभी गंगा नदी को भी नहीं मिला। यहां का मीडिया प्रशंसा का पात्र है ।
डॉ. भारती ने कहा कि नदियों की बाढ़ से कभी घबराना नहीं चाहिए। यह डरने का नहीं सम्मान का समय होता है । किसी नदी में बाढ़ कम, किसी में ज्यादा आती है , लेकिन बाढ़ आना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि नदियां मानव अस्तित्व से बहुत पहले से हैं । भारत की नदियां सुंदर व सुशील हैं और उनके नाम भी बहुत खूबसूरत हैं। गंगा, नर्मदा और शिप्रा कावेरी से धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। नदियों को स्वर्ग से उतरी हुई बताया गया है ।उन्होंने कहा सिंधु घाटी की नदी सूख गई होगी इसलिए वहां से लोगों ने पलायन किया और पानी की खोज में आगे बढ़ते गए ।इसीलिए नदी किनारे सभ्यताएं विकसित हुई । अरपा किनारे भी चरवाहे पानी खोजते हुए आए और धीरे-धीरे फिर बिलासपुर ने आकार लिया।
डॉ. भारती ने कहा कि 1837 के एकअधिनियम के तहत नदियां सरकारी हो गईं। अब तो बड़ी कंपनियां पानी बेचने लगी हैं क्योंकि पृथ्वी का 97% पानी खारा है सिर्फ 3% पानी ही शुद्ध और मीठा है ,जिसमें से भी आधा अमीर देशों की मिल्कियत है । भारत की नदियों का पानी प्रदूषित गया है। अब आगे स्वच्छ जल प्राप्त करना बहुत बड़ी चुनौती है । विकास का नया मॉडल होने से नदी का मार्ग अवरुद्ध हो रहा है । नदियां हमारी सारी गंदगी ले जाकर समुद्र में मिला देती थी, लेकिन अब मार्ग अवरुद्ध होने के कारण सारी गंदगी नदी में ही बैठी रहती है, जिसके कारण नदियों की सफाई के लिए बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं।
डॉ. भारती ने कहा कि नदियां हमारी माता मानी गई हैं । पहले नदी की परिक्रमा होती थी । समाज के लोग नदीकृत होते हुए दिखते थे, लेकिन अब नदी का पर्यटन विकसित हो रहा है । नदी के पर्यटन की लोगों को जरूरत नहीं है। हमें चाहिए कि हम नदी के तीर्थ विकसित करें और नदी आधारित पर्यटन दूसरे नंबर पर हो। नदी का पर्यटन लोगों ने आनंद प्राप्ति के लिए बना लिया है । अब समय आ गया है कि नदी आधारित कृषि प्रणाली फिर से जीवित करें ताकि नदियों को नया जीवनदान मिल सके। यह समाज के लिए बहुत बेहतर होगा। उन्होंने बताया तिब्बत से 86 नदियां निकलती हैं जो पूरे एशिया को पानी देती हैं ।
उन्होंने बताया कि जो नदियां बाढ़ नहीं लाती वह बांझ कहलाती हैं। बाढ़ से कभी डरना नहीं चाहिए ।किसी नदी में कम किसी में ज्यादा बाढ़ आती है पर बाढ़ बहुत अच्छा संकेत होती है ।।
डॉ. भारती ने कहा कि नदियों को जोड़ना ठीक नहीं है। नदी के संगम भी ठीक नहीं होते । यहां से मछलियां उछलकर वापिस जाने का प्रयास करती हैं और प्रायः संगम के तट पर रहने वाले मनोविकार से ग्रस्त होते हैं । इनमें अपराधी भी होते हैं और एक तरह की नकारात्मकता विकसित होते रहती है । प्रेस क्लब के इस कार्यक्रम में महेश श्रीवास सोमनाथ यादव अक्षय नामदेव राजेश दुआ दीपेन शुक्ला सुनील शर्मा रमण किरण अतुल कांत खरे सहित बहुत से पत्रकार ।उपस्थित थे धन्यवाद ज्ञापन अध्यक्ष वीरेंद्र गहवई ने किया।
इसलिए विफल होती हैं परियोजनाएं
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि नदी घाटी परियोजनाएं इसलिए विफल होती हैं क्योंकि बनाई गई टीम को नदियों की ठीक से जानकारी नहीं होती ।आधी अधूरी जानकारी लेकर नदियों के लिए उतरते हैं और असफल हो जाते हैं । पर्याप्त रिसर्च के बाद ही इस तरह की परियोजनाएं बननी चाहिए।
बिलासपुर (Fourthline )। नदियों को बचाना है तो नदी आधारित कृषि प्रणाली को फिर से विकसित करना पड़ेगा ।आने वाले समय में लोग स्वच्छ जल के लिए तरस जाएंगे, स्थितियां अभी से संकेत देने लगी हैं । प्रख्यात नदीविद एवं फिजी के पूर्व सांस्कृतिक राजदूत डॉ.. ओमप्रकाश भारती ने आज प्रेस क्लब के पहुना कार्यक्रम में कहा कि यहां बिलासपुर में जितना कवरेज अरपा को मिलता है उतना तो कभी गंगा नदी को भी नहीं मिला। यहां का मीडिया प्रशंसा का पात्र है ।
डॉ. भारती ने कहा कि नदियों की बाढ़ से कभी घबराना नहीं चाहिए। यह डरने का नहीं सम्मान का समय होता है । किसी नदी में बाढ़ कम, किसी में ज्यादा आती है , लेकिन बाढ़ आना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि नदियां मानव अस्तित्व से बहुत पहले से हैं । भारत की नदियां सुंदर व सुशील हैं और उनके नाम भी बहुत खूबसूरत हैं। गंगा, नर्मदा और शिप्रा कावेरी से धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। नदियों को स्वर्ग से उतरी हुई बताया गया है ।उन्होंने कहा सिंधु घाटी की नदी सूख गई होगी इसलिए वहां से लोगों ने पलायन किया और पानी की खोज में आगे बढ़ते गए ।इसीलिए नदी किनारे सभ्यताएं विकसित हुई । अरपा किनारे भी चरवाहे पानी खोजते हुए आए और धीरे-धीरे फिर बिलासपुर ने आकार लिया।
डॉ. भारती ने कहा कि 1837 के एकअधिनियम के तहत नदियां सरकारी हो गईं। अब तो बड़ी कंपनियां पानी बेचने लगी हैं क्योंकि पृथ्वी का 97% पानी खारा है सिर्फ 3% पानी ही शुद्ध और मीठा है ,जिसमें से भी आधा अमीर देशों की मिल्कियत है । भारत की नदियों का पानी प्रदूषित गया है। अब आगे स्वच्छ जल प्राप्त करना बहुत बड़ी चुनौती है । विकास का नया मॉडल होने से नदी का मार्ग अवरुद्ध हो रहा है । नदियां हमारी सारी गंदगी ले जाकर समुद्र में मिला देती थी, लेकिन अब मार्ग अवरुद्ध होने के कारण सारी गंदगी नदी में ही बैठी रहती है, जिसके कारण नदियों की सफाई के लिए बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं।
डॉ. भारती ने कहा कि नदियां हमारी माता मानी गई हैं । पहले नदी की परिक्रमा होती थी । समाज के लोग नदीकृत होते हुए दिखते थे, लेकिन अब नदी का पर्यटन विकसित हो रहा है । नदी के पर्यटन की लोगों को जरूरत नहीं है। हमें चाहिए कि हम नदी के तीर्थ विकसित करें और नदी आधारित पर्यटन दूसरे नंबर पर हो। नदी का पर्यटन लोगों ने आनंद प्राप्ति के लिए बना लिया है । अब समय आ गया है कि नदी आधारित कृषि प्रणाली फिर से जीवित करें ताकि नदियों को नया जीवनदान मिल सके। यह समाज के लिए बहुत बेहतर होगा। उन्होंने बताया तिब्बत से 86 नदियां निकलती हैं जो पूरे एशिया को पानी देती हैं ।
उन्होंने बताया कि जो नदियां बाढ़ नहीं लाती वह बांझ कहलाती हैं। बाढ़ से कभी डरना नहीं चाहिए ।किसी नदी में कम किसी में ज्यादा बाढ़ आती है पर बाढ़ बहुत अच्छा संकेत होती है ।।
डॉ. भारती ने कहा कि नदियों को जोड़ना ठीक नहीं है। नदी के संगम भी ठीक नहीं होते । यहां से मछलियां उछलकर वापिस जाने का प्रयास करती हैं और प्रायः संगम के तट पर रहने वाले मनोविकार से ग्रस्त होते हैं । इनमें अपराधी भी होते हैं और एक तरह की नकारात्मकता विकसित होते रहती है । प्रेस क्लब के इस कार्यक्रम में महेश श्रीवास सोमनाथ यादव अक्षय नामदेव राजेश दुआ दीपेन शुक्ला सुनील शर्मा रमण किरण अतुल कांत खरे सहित बहुत से पत्रकार ।उपस्थित थे धन्यवाद ज्ञापन अध्यक्ष वीरेंद्र गहवई ने किया।
इसलिए विफल होती हैं परियोजनाएं
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि नदी घाटी परियोजनाएं इसलिए विफल होती हैं क्योंकि बनाई गई टीम को नदियों की ठीक से जानकारी नहीं होती ।आधी अधूरी जानकारी लेकर नदियों के लिए उतरते हैं और असफल हो जाते हैं । पर्याप्त रिसर्च के बाद ही इस तरह की परियोजनाएं बननी चाहिए।