तखतपुर के परसदा में शुरू होगा नया
प्लांट, अगले माह से उत्पादन
अतुल कांत खरे
बिलासपुर (Fourthline) ।अब छत्तीसगढ़ में भी बायोकोल मिलने लगेगा। पर्यावरण संरक्षण और ईंधन बचाने की दिशा में यह अभिनव कदम है। तखतपुर के परसदा गांव में इसकी पहली यूनिट लगाई जा रही है। अब तक 300 से ज्यादा किसान बायोकोल के लिए सुपर नेपियर घास उगाने कि इच्छा जता चुके हैं।
![](http://fourthline.in/wp-content/uploads/2023/02/IMG-20230224-WA0011.jpg)
एसपीओ किसान उत्पादक संगठन के राम कुमार देवांगन ने fourthline को बताया कि छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों में इसका उत्पादन चल रहा है। इससे बना हुआ बायोकोल पर्यावरण मित्र है । उन्होंने बताया प्रतिदिन 10,000 टन बायोकोल उत्पादन का लक्ष्य है , जिसके लिए परसदा में यूनिट लग चुकी है । अभी सुपर नेपियर के लिए बीज महाराष्ट्र से मंगाए जा रहे हैं। इस प्रोजेक्ट में 300 से ज्यादा किसानों ने रुचि दिखाई है। उनके लिए भी शीघ्र बीज उपलब्ध कराए जाएंगे ।इस प्लांट से बनने वाला बायो कोयला 20 से 25 रूपए किलो बिकेगा , जिसे जलाने से पर्यावरण को कोई क्षति नहीं पहुंचेगी और एक आसान ईधन लोगों को उपलब्ध होगा।
छत्तीसगढ़ शासन की यह अभिनव योजना है, जिसमें 10 हजार तक की प्रोत्साहन राशि भी प्रदान की जाएगी। यह अमोल किस्म किसानों को अपने खेतों में लगाना है। बहुत से ऐसे किसान जो किन्हीं कारणों से नियमित खेती नहीं कर कर पा रहे हैं और जिनके खेत खाली पड़े हुए हैं , उनके लिए यह वरदान बनकर आई है। इस फसल की खरीदी एग्रीमेंट के आधार पर होगी । इस फसल से 2 से ढाई लाख रुपए प्रति एकड़ आय होगी , जो नियमित फसल से बहुत ज्यादा है । अमोल किस्म में बहुत कम पानी की जरूरत पड़ती है । बार-बार जोताई भी नहीं लगती। नाही कीड़ों का प्रकोप होता है।
श्री देवांगन ने बताया कि अन्य राज्य इससे जैविक खाद सीएनजी और बायोकोल बना रहे हैं। अभी छत्तीसगढ़ में सिर्फ बायोकोल बनेगा और प्रोजेक्ट सफल होने के बाद फिर सीएनजी और जैविक खाद पर काम किया जाएगा। रविशंकर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड इंधन क्रांति के लिए किसानों को हर तरह का सहयोग देने के लिए तैयार है । इसकी विशेषता है कि एक बार बुवाई के बाद इसे 24 बार कटाई हो सकती है क्योंकि अमोल किस्म बहुत लंबी होती है
इसका बहुत अच्छा उपयोग किया जा सकता है। किसानों को इससे भरपूर लाभ होगा परसदा से प्रतिदिन 10,000 टन बायोकोल निकालने की तैयारी चल रही है ।
![](http://fourthline.in/wp-content/uploads/2023/02/IMG-20230224-WA0010.jpg)
यह बायोकोल मई तक छत्तीसगढ़ के बाजारों में उपलब्ध होगा । छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में इससे पहले इस घास का उत्पादन शुरू किया गया था। इसे पशु आहार के रूप में लगाया गया था , जिससे दूध का उत्पादन बढ़ गया। नेपियर की पत्तियों में विटामिन बहुत अधिक होते हैं। इसकी खेती सूखे और बंजर इलाकों में भी हो जाती है। एक बार लगाकर 5 साल तक कमाई की जा सकती है ।कृषि विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर बीबी ब्यौहार ने बताया नेपियर की खासियत यह है कि यह सभी प्रकार की मिट्टी में उग जाती है। सिर्फ शुरू में 20 से 25 दिन हल्की सिंचाई लगती है । इसमें भरपूर पोषक तत्व होते हैं । इसमें क्रूट प्रोटीन होता है। यह पूरी तरह प्रकृति मित्र होती है। इसके लगाने से खरपतवार अपने आप साफ हो जाते हैं। इससे बना बायोकोल किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाता । महाराष्ट्र के कई गांवों में इस कोयले का उत्पादन हो रहा है , जिसका लोग ईंधन के रूप में भरपूर प्रयोग कर रहे हैं।
श्री देवांगन ने बताया कि परसदा की यूनिट को प्रतिदिन सौ टन नेपियर घास की आवश्यकता होगी । इससे बने हुए बायोकोल में बिल्कुल जरा सी राख होती है इसलिए अन्य राज्यों में इसे बहुत पसंद किया जा रहा है । इसके बाद सीएनजी उत्पादन का लक्ष्य है जिसे तरल रूप में वाहनों और रसोई गैस के रूप में काम लिया जा सकेगा।
मिलेगा रोजगार
छत्तीसगढ़ में इस तरह की यूनिट बढ़ने से कम से कम 2000 लोगों को रोजगार मिलेगा। इसके अलावा अप्रत्यक्ष रूप से माल परिवहन में रोजगार के नए अवसर मिलेंगे ।किसानों को इसका सहकारिता मॉडल समझाया गया है । किसानों को हर 3 माह में एक बीघा कटाई से 80 हजार से 1 लाख तक की आय होगी।